जिन्दगी
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जिन्दगी के भंवर में मुझको फंसाकर,
किधर जा रहे हो हमको भुलाकर ।
हुआ था इक हादसा शामे जुदाई,
खुद रोने लगे वो मुझको हंसाकर ।
साबित हुए सब मतलबी जहां में,
हर शख्स को जब देखा आजमा कर ।
तारीफ के काबिल दोस्त वह है,
दुश्मनी भुलाए जो प्यार से निभाकर ।
कान्ता गोगिया
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