जिन्दगी
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जिंदगी ख़ाक हो गई यारों,
बात बेबाक हो गई यारों |
मौत से जब मिली निगाहें,
हर नज़र पाक हो गई यारों |
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छोड़ कर फूल जिन काँटों को चले जाते हैं,
कभी फूलों के वही खार कम आते हैं |
गैर की महक से साँसों को सजाने वाले,
वक़्त पर, छोड़े हुए यार कम आते हैं |
कान्ता गोगिया
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