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जिंदगी को जीना का ढंग कितना बदल गया है आज ? कैसा समाज हो गया है हमारा? बस सब अपनी ही सोचते हैं| स्वार्थ की भूख इतनी बढ गई है कि हम अपने आगे कुछ नहीं सोचना चाहते | कभी कभी सोचती हूँ कि क्यों हो गए हम ऐसे? हवा ऐसी ही है या आदमी बदल गया | जो लोग सिर्फ अपने लिए सोचतें हैं उनसे दूर ही रहें| खुदगर्ज़ समाज, खुदगर्ज़ लोग – सामने से मीठे, दिल के खोटे होते हैं | उन को किसी कि परवाह नहीं होती| सोचती हूँ कहाँ से शुरु की जाये अपनी बात? जीवन के समझने की सोच सबकी अपनी-अपनी ही है – कोई खुश रह कर जीता है, कोई धोखे खाकर सबको कोसता हुआ जीता है, कोई अपनी जिम्मेदारियों को पूरी करने के लिए जीता है और भी ना जाने क्या क्या? जीवन जो भी हो चाहे सफर या मजबूरी – मैं सोचती हूं कि उत्सव की तरह होना चहिये.ये सब ऐसे ही नही सोच लिया मैने| आज – अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिना कुछ सोचे समझे ऐसे ही जी लिया. जैसे बस सांस लेने को जी रही थी. या बस जीवन है इसलिए जी रही थी बहुत देर से पता चला की यह जीवन नही है. यह जीना नही है.फिर अपने आप को हारा हुआ महसूस करने लगी|आज भी खुद के जीवन का सही अर्थ तो नही ढूंढ पायी हूँ पर हाँ इतना समझ गयी हूँ की हर समय एक जैसा नही होता. और समय पर किसी का ज़ोर भी नही चल सकता | फिर कोई ऐसा मिला जिसने अपनी बातों से इतना झकझोर दिया की जीवन को सोचने की दिशा बदल गयी जिन्होंने ईश्वर से, साईं से मिलाया – उनको अपना गुरु बना लिया मैंने | बहुत दिन तक, . बहुत बार, साईं सचरित्र पड़ती रही| एक चीज़ को समझा कि संसार धर्म क्षेत्र है. सब कुछ ईश्वर ही है. उसी से बना और उसके द्वारा ही मिटाया जाना है. बस फिर क्या था? ईश्वर सुन्दर है यह जान गयी और फिर हर समय …चाहे वो कैसा भी हो एक उत्सव बन गया. जिंदगी मेरे उन्ही पलों के किस्सों का पिटारा है जो मन में तो थे पर बाहर नही आ पा रहे थे. क्यूंकि यह जीवन का उत्सव है, इसमें जीवन की सुन्दरता है. इसमें प्रेम है, इसमें हार कर जीतने के किस्से है और वो सब कुछ है जो जीवन को एक उत्सव बना देता है| इश्वर ने यह जीवन दिया है कुछ अच्छा करने के लिए, समाज को बदलने के लिये हमें एक साथ कोशिश करनी चाहिए ताकि सबका जीवन एक उत्सव बने – मैं तो पूरी कोशिश करूँगी पर आपका साथ ज़रूर चाहूँगी| जय साईं राम
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