जिन्दगी
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हम बैठे रहे यकीन के दम पर यों
वह दोस्त बनकर
दर तक कांटे बो गया
क्या कीजियेगा इस ख़त का अब
मजमून है खूब
लेकिन ख़त का पता खो गया
दिल से खेल किया उसने शाम तक
हुई रात तो हमारे
पहलू में सो गया
किस का इन्तजार कीजियेगा यहाँ
फिर न लौटा
एक बार जो गया
बुलाया था हाले दिल सुनाने की गरज से
आप तो बैठे रहे
जालिम अपनी रो गया.
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