जिन्दगी
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यह क्या कम है
स्वयं दीपक बनकर तुम रात भर जले
मंजिल मिले, न मिले
यह बड़ी बात है कि तुम पूरी हिम्मत से चले
बुझना या चूकना
बड़ी बात नहीं है
बड़ी बात है जलना
मंजिल मिले, न मिले
अहम् बात है चलना |
जलो, बूझो, पुन चलो
थको, रुको, पुन चलो
यही महामंत्र
कोशिश ही उपलब्धि का यन्त्र है
याद रहे
हजारों साल में एक बार
प्रकृति किसी हिमालय को जनती है
धरती कि छाती पर
कोई ऊँची मीनार
कितना ही चाहो
रातों रात नहीं बनती है|
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