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सहयात्री चाँद

जिन्दगी
जिन्दगी
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पगडण्डी का सफ़र
एक शुरुआत तनहा – तनहा
पर यह देवदार और चिनार
और इन्हीं के बीच
हम से छिपता-छिपाता
पर, पीछे चल देता है चाँद
अरे भाई !
क्योंकर पीछे छुपे हुए चलते हो ?
दोस्त बुरे नहीं हो
चाहो तो बराबर ही
चल सकते हो |
कम से कम कुरेदकर
सवाल तो नहीं करते हो |
चांदनी की चादर बिछाते हो
पर ख्वाबों के दायरे में
कैद तो नहीं करते हो |
यूँ भी तुम ज़मीन के
तंग होते दायरों से दूर
अच्छे दोस्त हो
साथ ही चल सकते हो |

कान्ता गोगिया

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