जिन्दगी
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देखती थी मैं एक सपना
दूर उस छोर
एक छोटा सा गाँव है
यह मेरे सपनों का गाँव है
जहाँ मैं रहने का सपना देखती थी
जहाँ ‘यह’ नहीं है ‘वह’ नहीं है
ऐसा-वैसा कुछ नहीं है
सिर्फ एक सुखद एहसास सा है
भीड़ भाड़ नहीं है,
कोई मारा मारी नहीं है,
कोई होड़ नहीं है,
बस सब बेजोड़ है,
मानव है यहाँ भी,
पर मानवता अधिक है,
शान्त है यहाँ सब,
क्लांत अशांत कोई नहीं,
सुसंगति है यहाँ विसंगति नहीं
आनंदमय है यहाँ सब
क्योंकि मेरे ‘साईं’ का कीर्तन होता है यहाँ,
क्योंकि यहाँ मेरे ‘गुरूजी’ का वास है यहाँ
मेरे सपनों का गाँव है यह
आज
पूरा होता लगता है यह सपना
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