जिन्दगी
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कभी सफ़र था
रोटी से चाँद तक,
चाँद तब मंजिल था |
आज सफ़र है –
चाँद से रोटी तक ,
रोटी आज मंजिल है |
मैं ! जिसके क़दमों में गर्दिश है
जिसे चलता ही रहना है|
आज भी तय कर रहीं हूँ सफ़र
पर सफ़र का जो आनंद
पहले था
वह आज नहीं रहा
आज तो थकी हरी है चाल
चलना तो मजबूरी है –
जिंदगी को चलाने के लिए |
कान्ता गोगिया
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