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ग़ज़ल

जिन्दगी
जिन्दगी
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कितना मुश्किल है कठिन हो के सरल हो जाना ,
ठोस पत्थर का बदलकर कमल हो जाना |
तुमसे ही प्यार करने में कहीं चूक हुई ,
वर्ना आसान नहीं था अमृत का यूँ बह जाना |
आज का आदमी दलदल में फंसा है सर तक ,
कब वो सीखेगा जाने दलदल में कमल हो जाना |
कहकहे जिनके लबों पर है सदा ठहरते ,
उनकी आँखों का आसान नहीं सजल हो जाना |
वक़्त आएगा , देखेगा, यूँ ही चला जाएगा ,
कौन रोक सका है कभी आज का कल हो जाना |

——— कान्ता गोगिया ———

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