जिन्दगी
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रूह तपती रही
जिस्म जलता रहा,
रात भर आस्मा
भी पिघलता रहा |
तेरे आने की उम्मीद लेकर जला
दीप तो बुझ गया
मगर-
दिल जलता रहा |
चाँद की रौशनी
धुन्धली होने लगी,
तारे भी गुम हुए,
वक़्त चलता रहा |
साथ मेरे यह जहाँ रो दिया,
दिल का लावा यों
बहकर निकलता रहा ,
रात भर आस्मा
पिघलता रहा |
– कान्ता गोगिया
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