जिन्दगी
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मेरे आस-पास जो लोग रहते हैं
उनको लोग, आदमी नहीं
आम आदमी कहते हैं,
वे परम विशिष्ट नहीं हैं
इसलिए वे अति-विशिष्ट नहीं हैं|
वे दुखों में फूट-फूट कर रोते हैं,
और ख़ुशी में खुलकर हँसतें हैं |
वे इतने सरल हैं –
कि पथरों की कैद से छूटे हुए
झरने की तरह तरल हैं,
वे अपना ही नहीं
दूसरों का भी ब़ोझ ढोते हैं
उनकी मजबूरी उनकी मेहनत है
और उनकी मेहनत ही उनका दर्द
उनका दर्द, उनके चेहरे पर
ऐसा नक्शा बनाता है –
जिसमे सारे देश का
चेहरा नज़र आता है |
वे बड़े पवित्र हैं
प्रदुषण से भरे गंगाजल की तरह
उनकी जड़ें कीचड में धंसी हैं
लेकिन वे सूर्ये की ओर मुंह करके
खिलते हैं कमल की तरह
वे आम आदमी हैं –
उनका चेहरा उनकी पहचान है,
यह चेहरा ही असली हिंदुस्तान है |
कान्ता गोगिया
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