गहरी राज़ की बातों का एकाकी सूनापन ले जाता है किस और ….
मुड़ के देखती हूँ जब, बिछुड़ी मंज़िल को नजर आता नहीं कोई छोर | —————————————
कान्ता गोगिया
You must be logged in to post a comment.
Read Comments