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घर कहाँ से लाऊं

जिन्दगी
जिन्दगी
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तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ
और दुआ देकर परेशान सी हो जाती हूँ
तू धूप का टुकड़ा, मैं दाग दाग साया
तू रोशनी का सपना, मेरी कोख में क्यों आया ?
मैं बे दरोदीवार हूँ , तुझे कहाँ छुपाऊं
और तू जहाँ पर खेले, वो घर कहाँ से लाऊं ?

– कान्ता गोगिया

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