जिन्दगी
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तुम्हारी दो बाँहों के
घेरे में
बसा हुआ मेरा संसार
तुम्हारे बिना मैं
हूँ तो कहाँ हूँ ?
दूर जहाँ तक दृष्टि जाती है
वहाँ तुम ही तुम हो
तुमसे परे मैं
कुछ भी नहीं ,
मैं तुम मय हो गई हूँ !
तुम्हारे बिना जो जिया
वह भी कोई जीना था,
तुमसे जुड़कर मैं
जीवन से जुड़ गई हूँ !
– कान्ता गोगिया
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