जिन्दगी
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मकड़ी जाला बुनती है ,
तुम भी जाला बुनते हो,
मैं भी जाला बुनती हूँ,
हम सब जाला बुनते हैं
जाले इसलिए हैं
कि वे बुने जाते हैं
मकड़ी के द्वारा
और तुम्हारे, मेरे
या हम सब के द्वारा !
मकड़ी , तुम या मैं
और हम सब इसलिए हैं
कि अपने अपने जालों में
या एक-दूसरे के बुने
जालों में फंसे
जब हम जाले बुनते हैं,
तब तो चुपचाप बुनते हैं ,
लेकिन जब उनमें फंसते हैं
तब बहुत शोर मचाते हैं |
– (c ) कान्ता
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