जिन्दगी
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आज सवेरे जब किताब खोली
तुम्हारे दिल पसंद गीत वाले पाने पर
पड़ी हुई थी
सुर्ख गुलाब की नाज़ुक पंखुरियां |
वे सूख गयी थी,
फिर भी हसीं थी, मासूम थी,
बिलकुल तुम्हारी तरह
ऐसे मुस्करा रही थी जैसे फुलझरियां |
उस दर्द भरे गीत के दामन पर
वे बिखेर रही थी एक खुश्बू उदास सी
उन की उदासी भी थी इतनी खूबसूरत
कि याद आई मुझे-
तुम्हारे साथ गुज़ारी वह आंसू भरी घड़ियाँ
टूटती-बिखरती यादों को
जोड़ती ये अनमोल कड़ियाँ
सुर्ख गुलाब की नाज़ुक पंखुरियां |
– कान्ता गोगिया
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