तू संत है या कायर … Awara Masiha - A Vagabond Angel एक भटकती आत्मा जिसे तलाश है सच की और प्रेम की ! मरने से पहले जी भरकर जीना चाहता हूं ! मर मर कर न तो कल जिया था, न ही कल जिऊंगा ! तू संत है या कायर
एक गद्देदार आसन पर आराम से तू संत बना बैठा है
बाते मोक्ष की करता , फिर क्यों शुक्र शनि से डरता है
जब बन चूका है तू संत ,फिर तुझसे कोई क्या ले लेगा
जिसकी इच्छाएं ही ना हो , वह किसी से भला क्यों डरेगा
इन मणियो के खेल में क्यों , तू इस कद्र उलझा है
बुरा वक़्त ही इन्सान की जब असली परीक्षा है
अंगूठियाँ हाथ में कई तेरे , तुझे किसका भय सताता है
जब छोड़ दिया तूने सब कुछ , फिर तू किससे घबराता है
तेरे तन के मैले वस्त्र या साफ़ चरित्र भला कोई तुझसे कैसे छीनेगा
इससे ज्यादा जब कुछ है नहीं तेरे पास
फिर
कौन सा राहू केतु या शनि तेरे द्वारे फटकेगा
जब हौंसला तुझमे नहीं , जिन्दगी की दुश्वारियों से लड़ने का
क्यों देता है उपदेश दूसरों को, सब कुछ त्याग करने का
खुद को लगती है गर्मी तो बिजली का पंखा चलाता है
बातें बनाने के लिए भी सामने माइक लगाता है
क्या और कैसे सिखाएगा तू जीवन का रहस्य दूसरों को
जब तू खुद ही नहीं पढ़ सका , सही से इस कुदरत को
क्यों भगवे वस्त्रो और रुद्राक्ष के अंदर खुद को लपेटा है
मोक्ष की पहली परिभाषा ही तू गलत समझ कर बैठा है
जब पड़ने लगे तुझे फर्क, इन सब दिखावटी चीज़ों का
तू बन चूका है गुलाम इंसानी की बनायीं जंजीरों का
कैसे कहेगा की, भगवा या रुद्राक्ष से भावों में शुद्धी आती है
अगर भेड़ियों को पहना दे यह सब , क्या उनकी भूख बदल जाती है
इन्हें पहनने के बाद भेडिये क्या घास खाने लगते है
छोड़ दो उनके भेड़ो के झुण्ड में तो, भाई चारा निभाने लगते है
समाज में फैले भगवे भेडिये तो सबसे ज्यादा आतंक मचाते है
असली भेडियो तो पेट भरने के बाद कुछ समय के लिए भी रूक जाते है
बिना दिखावे के संत बनने में फिर क्या तौहीन है
इन विलासता के बिना क्या जीवन अर्थ विहीन है
यह मणि , रुद्राक्ष और भगवा तो सब इंसानी दिखावे है
जिनका कर्म और चरित्र हो उजला , उनके लिए यह सब पहनावे है
कर्म से ज्यादा पहनावे को महत्व देने से क्या होगा
जब भगवा पहनने वाला ही गन्दा हो तो उससे किसका भला होगा ….
सर पर बांधे है पगड़ी बालों में लटायें लगाये बैठा है
तू खड़ा रह नहीं सकता कुछ पल, आसन पर खुद को समाये बैठा है
जब तू कुछ नहीं करता दिन भर में, खुद मेहनत का काम
फिर तो तू भी यही शिक्षा देगा , तेरी बिगड़ी बनाये राम
कम से कम थोडा सा अपने शरीर को ही संभाल के रख लेता
जिस मानव शरीर में तू जन्मा है, उसका ही मान रख लेता
शरीर ही आत्मा का असली मंदिर है यह बात जगजाहिर है
जिसका मंदिर ही गन्दा है फिर वह कैसा पुजारी है
बातें करने से किसी को मोक्ष नहीं मिलता
पाँव में चुभा हो काँटा , बिना उसके निकले संतोष नहीं मिलता
बहता पानी ही जीवन का असली रहस्य है
जो रुक गया उसकी मौत निश्चित है
जीवन का संघर्ष ही असली सच्चाई है
उससे दूर भागने में भला किसकी भलाई है
जिन आसन पर बैठे तुम खाली बातें बनाते हो
क्या रोटी पानी के बदले , तुम हवा और घास खाते हो
जब तक यह शरीर अपनी गति से अंत तक चलेगा
वायु , जल और अन्न शरीर में अवश्य पड़ेगा
क्या रोजाना सुबह तुम्हे नित्य क्रिया नहीं होती
उसके बाद फिर किस मोक्ष की जरूरत है होती
अपूर्ण इच्छाएं ही इन्सान को जिन्दा रखती है
उनको पूरी करने की अभिलाषा ही सच्ची तरक्की है
यूँ भाग कर शहर से जंगल में छिपने से क्या होगा
जब पेट में तेरे दर्द होगा , तू भी किसी अस्पताल में मरीज़ होगा
तब मत मांगना डॉक्टर से तू इलाज के लिए दवाई
तब मांगना अपने गुरु से इस दुःख की रिहाई
फिर तुझे पता चलेगा की असली मोक्ष क्या है
दोष भटकने वाले का है या भटकाने वाले का है ….
एक गद्देदार आसन पर आराम से तू संत बना बैठा है
बाते मोक्ष की करता , फिर क्यों शुक्र शनि से डरता है
जब बन चूका है तू संत ,फिर तुझसे कोई क्या ले लेगा
जिसकी इच्छाएं ही ना हो , वह किसी से भला क्यों डरेगा
इन मणियो के खेल में क्यों , तू इस कद्र उलझा है
बुरा वक़्त ही इन्सान की जब असली परीक्षा है
अंगूठियाँ हाथ में कई तेरे , तुझे किसका भय सताता है
जब छोड़ दिया तूने सब कुछ , फिर तू किससे घबराता है
तेरे तन के मैले वस्त्र या साफ़ चरित्र भला कोई तुझसे कैसे छीनेगा
इससे ज्यादा जब कुछ है नहीं तेरे पास
फिर कौन सा राहू केतु या शनि तेरे द्वारे फटकेगा
जब हौंसला तुझमे नहीं , जिन्दगी की दुश्वारियों से लड़ने का
क्यों देता है उपदेश दूसरों को, सब कुछ त्याग करने का
खुद को लगती है गर्मी तो बिजली का पंखा चलाता है
बातें बनाने के लिए भी सामने माइक लगाता है
क्या और कैसे सिखाएगा तू जीवन का रहस्य दूसरों को
जब तू खुद ही नहीं पढ़ सका , सही से इस कुदरत को
क्यों भगवे वस्त्रो और रुद्राक्ष के अंदर खुद को लपेटा है
मोक्ष की पहली परिभाषा ही तू गलत समझ कर बैठा है
जब पड़ने लगे तुझे फर्क, इन सब दिखावटी चीज़ों का
तू बन चूका है गुलाम इंसानी की बनायीं जंजीरों का
कैसे कहेगा की, भगवा या रुद्राक्ष से भावों में शुद्धी आती है
अगर भेड़ियों को पहना दे यह सब , क्या उनकी भूख बदल जाती है
इन्हें पहनने के बाद भेडिये क्या घास खाने लगते है
छोड़ दो उनके भेड़ो के झुण्ड में तो, भाई चारा निभाने लगते है
समाज में फैले भगवे भेडिये तो सबसे ज्यादा आतंक मचाते है
असली भेडियो तो पेट भरने के बाद कुछ समय के लिए भी रूक जाते है
बिना दिखावे के संत बनने में फिर क्या तौहीन है
इन विलासता के बिना क्या जीवन अर्थ विहीन है
यह मणि , रुद्राक्ष और भगवा तो सब इंसानी दिखावे है
जिनका कर्म और चरित्र हो उजला , उनके लिए यह सब पहनावे है
कर्म से ज्यादा पहनावे को महत्व देने से क्या होगा
जब भगवा पहनने वाला ही गन्दा हो तो उससे किसका भला होगा ….
सर पर बांधे है पगड़ी बालों में लटायें लगाये बैठा है
तू खड़ा रह नहीं सकता कुछ पल, आसन पर खुद को समाये बैठा है
जब तू कुछ नहीं करता दिन भर में, खुद मेहनत का काम
फिर तो तू भी यही शिक्षा देगा , तेरी बिगड़ी बनाये राम
कम से कम थोडा सा अपने शरीर को ही संभाल के रख लेता
जिस मानव शरीर में तू जन्मा है, उसका ही मान रख लेता
शरीर ही आत्मा का असली मंदिर है यह बात जगजाहिर है
जिसका मंदिर ही गन्दा है फिर वह कैसा पुजारी है
बातें करने से किसी को मोक्ष नहीं मिलता
पाँव में चुभा हो काँटा , बिना उसके निकले संतोष नहीं मिलता
बहता पानी ही जीवन का असली रहस्य है
जो रुक गया उसकी मौत निश्चित है
जीवन का संघर्ष ही असली सच्चाई है
उससे दूर भागने में भला किसकी भलाई है
जिन आसन पर बैठे तुम खाली बातें बनाते हो
क्या रोटी पानी के बदले , तुम हवा और घास खाते हो
जब तक यह शरीर अपनी गति से अंत तक चलेगा
वायु , जल और अन्न शरीर में अवश्य पड़ेगा
क्या रोजाना सुबह तुम्हे नित्य क्रिया नहीं होती
उसके बाद फिर किस मोक्ष की जरूरत है होती
अपूर्ण इच्छाएं ही इन्सान को जिन्दा रखती है
उनको पूरी करने की अभिलाषा ही सच्ची तरक्की है
यूँ भाग कर शहर से जंगल में छिपने से क्या होगा
जब पेट में तेरे दर्द होगा , तू भी किसी अस्पताल में मरीज़ होगा
तब मत मांगना डॉक्टर से तू इलाज के लिए दवाई
तब मांगना अपने गुरु से इस दुःख की रिहाई
फिर तुझे पता चलेगा की असली मोक्ष क्या है
दोष भटकने वाले का है या भटकाने वाले का है ….
By
Kapil Kumar
Awara Masiha
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