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दो बूंद मोहब्बत….

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
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दो बूंद मोहब्बत
चाहता हूँ उसकी मोहब्बत का जाम जी भरकर पियूँ
उसकी मोहब्बत के सरुर में जिन्दगी भर रहूँ
हर पल उसका दीदार मैं करू
कौन है मेरा अपना या कौन है पराया
इस बात की फ़िक्र मैं बाकी उम्र ना करूँ
मेरी इन चाहतों  की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
वह कब तो मेरे पास आएगी और कब मुझे गले लगाएगी
जो खुद फंसी है एक  दलदल में
वह उससे बाहर  कैसे आएगी
बढाया हाथ उसे मैंने  थामने के लिए
निकल जा बाहर दलदल से कुछ पल जीने के लिए
है ऐतराज उसे तो मेरे हाथ के छूने भर का
फिर कैसे देखा मैंने  सपना उसके साथ हमसफर  बनने का
मेरी इन तमाम कोशिसों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
करता हूँ ऊँची ऊँची बातें में दूसरों  की गुलामी की
क्यों बांध रखी है जंजीरे तुमने ऐसी वफादारी की
देता है जिल्लत और करता है बेवफाई जो तुम से दिन रात
कैसे कर सकते हो मोहब्बत ऐसे इन्सान के तुम साथ
आज खुद बन गया हूँ ऐसे सनम का मैं गुलाम
जिस पर इतना भी वक़्त नहीं की दे सके दो अल्फ़ाज़ों का सलाम
क्यों उसके इन्तजार में पलकें  बिछाए बैठा हूँ
जिसने नज़र  भर देखना नहीं क्यों उसके लिए सर झुकाए खड़ा हूँ
बात करता हूँ  मैं उसके साथ सारी जिन्दगी बिताने  की
मेरी इन तमन्नाओ की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
अच्छा हुआ है यह दिल फिर से टूट गया
बनाया था कांच का इस  कमबख्त को खुदा ने
ना जाने क्यों यह जाकर किसी और से जुड़ गया
जब रखा था मैंने  किसी बेरहम की ठोकर पर  इसे
तब तो इसकी मैंने  परवाह नहीं की
अब इसके टूटने पर  दिल से क्यों आह निकली
फिर से समेटता हूँ इसके टुकड़े इसे जोड़ने के लिए
कल फिर से रख सकूँगा सनम के कदमो में इसे टूटने के लिए
मेरी इन उम्मीदों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं

Hilary-Duff-Pic-Drawing


चाहता हूँ उसकी मोहब्बत का जाम जी भरकर पियूँ

उसकी मोहब्बत के सरुर में जिन्दगी भर रहूँ

हर पल उसका दीदार मैं करू

कौन है मेरा अपना या कौन है पराया

इस बात की फ़िक्र मैं बाकी उम्र ना करूँ

मेरी इन चाहतों  की भी कोई इन्तहा नहीं

क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत

दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं


वह कब तो मेरे पास आएगी और कब मुझे गले लगाएगी

जो खुद फंसी है एक  दलदल में

वह उससे बाहर  कैसे आएगी

बढाया हाथ उसे मैंने  थामने के लिए

निकल जा बाहर दलदल से कुछ पल जीने के लिए

है ऐतराज उसे तो मेरे हाथ के छूने भर का

फिर कैसे देखा मैंने  सपना उसके साथ हमसफर  बनने का

मेरी इन तमाम कोशिसों की भी कोई इन्तहा नहीं

क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत

दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं


करता हूँ ऊँची ऊँची बातें में दूसरों  की गुलामी की

क्यों बांध रखी है जंजीरे तुमने ऐसी वफादारी की

देता है जिल्लत और करता है बेवफाई जो तुम से दिन रात

कैसे कर सकते हो मोहब्बत ऐसे इन्सान के तुम साथ

आज खुद बन गया हूँ ऐसे सनम का मैं गुलाम

जिस पर इतना भी वक़्त नहीं की दे सके दो अल्फ़ाज़ों का सलाम

क्यों उसके इन्तजार में पलकें  बिछाए बैठा हूँ

जिसने नज़र  भर देखना नहीं क्यों उसके लिए सर झुकाए खड़ा हूँ

बात करता हूँ  मैं उसके साथ सारी जिन्दगी बिताने  की

मेरी इन तमन्नाओ की भी कोई इन्तहा नहीं

क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत

दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं


अच्छा हुआ है यह दिल फिर से टूट गया

बनाया था कांच का इस  कमबख्त को खुदा ने

ना जाने क्यों यह जाकर किसी और से जुड़ गया

जब रखा था मैंने  किसी बेरहम की ठोकर पर  इसे

तब तो इसकी मैंने  परवाह नहीं की

अब इसके टूटने पर  दिल से क्यों आह निकली

फिर से समेटता हूँ इसके टुकड़े इसे जोड़ने के लिए

कल फिर से रख सकूँगा सनम के कदमो में इसे टूटने के लिए

मेरी इन उम्मीदों की भी कोई इन्तहा नहीं

क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत

दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं


By

Kapil Kumar

Awara Masiha

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