दो बूंद मोहब्बत…. Awara Masiha - A Vagabond Angel एक भटकती आत्मा जिसे तलाश है सच की और प्रेम की ! मरने से पहले जी भरकर जीना चाहता हूं ! मर मर कर न तो कल जिया था, न ही कल जिऊंगा ! दो बूंद मोहब्बत
चाहता हूँ उसकी मोहब्बत का जाम जी भरकर पियूँ
उसकी मोहब्बत के सरुर में जिन्दगी भर रहूँ
हर पल उसका दीदार मैं करू
कौन है मेरा अपना या कौन है पराया
इस बात की फ़िक्र मैं बाकी उम्र ना करूँ
मेरी इन चाहतों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
वह कब तो मेरे पास आएगी और कब मुझे गले लगाएगी
जो खुद फंसी है एक दलदल में
वह उससे बाहर कैसे आएगी
बढाया हाथ उसे मैंने थामने के लिए
निकल जा बाहर दलदल से कुछ पल जीने के लिए
है ऐतराज उसे तो मेरे हाथ के छूने भर का
फिर कैसे देखा मैंने सपना उसके साथ हमसफर बनने का
मेरी इन तमाम कोशिसों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
करता हूँ ऊँची ऊँची बातें में दूसरों की गुलामी की
क्यों बांध रखी है जंजीरे तुमने ऐसी वफादारी की
देता है जिल्लत और करता है बेवफाई जो तुम से दिन रात
कैसे कर सकते हो मोहब्बत ऐसे इन्सान के तुम साथ
आज खुद बन गया हूँ ऐसे सनम का मैं गुलाम
जिस पर इतना भी वक़्त नहीं की दे सके दो अल्फ़ाज़ों का सलाम
क्यों उसके इन्तजार में पलकें बिछाए बैठा हूँ
जिसने नज़र भर देखना नहीं क्यों उसके लिए सर झुकाए खड़ा हूँ
बात करता हूँ मैं उसके साथ सारी जिन्दगी बिताने की
मेरी इन तमन्नाओ की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
अच्छा हुआ है यह दिल फिर से टूट गया
बनाया था कांच का इस कमबख्त को खुदा ने
ना जाने क्यों यह जाकर किसी और से जुड़ गया
जब रखा था मैंने किसी बेरहम की ठोकर पर इसे
तब तो इसकी मैंने परवाह नहीं की
अब इसके टूटने पर दिल से क्यों आह निकली
फिर से समेटता हूँ इसके टुकड़े इसे जोड़ने के लिए
कल फिर से रख सकूँगा सनम के कदमो में इसे टूटने के लिए
मेरी इन उम्मीदों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
चाहता हूँ उसकी मोहब्बत का जाम जी भरकर पियूँ
उसकी मोहब्बत के सरुर में जिन्दगी भर रहूँ
हर पल उसका दीदार मैं करू
कौन है मेरा अपना या कौन है पराया
इस बात की फ़िक्र मैं बाकी उम्र ना करूँ
मेरी इन चाहतों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
वह कब तो मेरे पास आएगी और कब मुझे गले लगाएगी
जो खुद फंसी है एक दलदल में
वह उससे बाहर कैसे आएगी
बढाया हाथ उसे मैंने थामने के लिए
निकल जा बाहर दलदल से कुछ पल जीने के लिए
है ऐतराज उसे तो मेरे हाथ के छूने भर का
फिर कैसे देखा मैंने सपना उसके साथ हमसफर बनने का
मेरी इन तमाम कोशिसों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
करता हूँ ऊँची ऊँची बातें में दूसरों की गुलामी की
क्यों बांध रखी है जंजीरे तुमने ऐसी वफादारी की
देता है जिल्लत और करता है बेवफाई जो तुम से दिन रात
कैसे कर सकते हो मोहब्बत ऐसे इन्सान के तुम साथ
आज खुद बन गया हूँ ऐसे सनम का मैं गुलाम
जिस पर इतना भी वक़्त नहीं की दे सके दो अल्फ़ाज़ों का सलाम
क्यों उसके इन्तजार में पलकें बिछाए बैठा हूँ
जिसने नज़र भर देखना नहीं क्यों उसके लिए सर झुकाए खड़ा हूँ
बात करता हूँ मैं उसके साथ सारी जिन्दगी बिताने की
मेरी इन तमन्नाओ की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
अच्छा हुआ है यह दिल फिर से टूट गया
बनाया था कांच का इस कमबख्त को खुदा ने
ना जाने क्यों यह जाकर किसी और से जुड़ गया
जब रखा था मैंने किसी बेरहम की ठोकर पर इसे
तब तो इसकी मैंने परवाह नहीं की
अब इसके टूटने पर दिल से क्यों आह निकली
फिर से समेटता हूँ इसके टुकड़े इसे जोड़ने के लिए
कल फिर से रख सकूँगा सनम के कदमो में इसे टूटने के लिए
मेरी इन उम्मीदों की भी कोई इन्तहा नहीं
क्या खूब लिखी है खुदा ने मेरी किस्मत
दो बूंद मोहब्बत की जिसके किस्मत में ही नहीं
By
Kapil Kumar
Awara Masiha
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