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जब इंतहा हो जाती है गम के अंधरे की
तभी ख़ुशी की सुबह होने की ताक़ीद आती है
मोहब्बत करने वालो के बीच समय की दूरी आ जाए
तो समझो मोहब्बत में गहराई आ जाती है
तुझे भूल जाने की गुस्ताखी मैं कैसे करू
ना जाने कैसे हर हसीना में तेरी सूरत उभर आती है …
तू जाना चाहती है मुझसे क्यों दूर
जब तुझे तन्हाइयो में मेरी याद आती है
अक्सर हल्का जख्म बन जाता है नासूर
जब जब उसे छिपाने की कयावद आती है
कब तक तू दूर रहेगी मुझसे
अक्सर यही दूरी दो दिलो में नजदीकियां लाती है …
तेरी हर ना के बाद जैसे हौसला और बढ़ जाता है
यह बात नहीं है तुझे सिर्फ पाने भर की
ऐसा मेरी रूह को ना जाने कैसे यक़ीन हो जाता है
यह तेरी रुसवाई नहीं मेरा इम्तिहान है
ऐसा कोई सन्देश मुझे हर बार दे जाता है
बार बार फेल होने के बाद
फिर से पास होने का जज्बा ना जाने कैसे बढ़ जाता है …
बड़ी बड़ी ख़्वाहिशों के बोझ में अक्सर
छोटी छोटी मासूम खुशियां कंही दब कर रह जाती है
बून्द बून्द से ही बनता है सागर
यह बात जितनी समझने में सीधी है
ना जाने हमारे ज़हन से कैसे निकल जाती है
नहीं चाहत मुझे किसी वीनस की देवी की
क्या करूँगा मैं जी कर उम्र लम्बी अज़गर सी
दौलत और शोहरत से भी भला किसी को चैन की नींद आती है
तू है मेरे दिल की धड़कन
तेरे बिना इस जिस्म से तो,मेरी रूह भी निकल जाती है …
By
Kapil Kumar
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