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आज भले ही ठुकराले मेरी मोहब्बत
तू कल इसका अंजाम देखेगी
मैं तड़पूँ तेरी याद में करवट बदलकर सारी रात
क्या तू चैन की नींद किसी की बांहों में सो लेगी
हमारे बीच तूने बना ली एक दीवार, मर्यादे के नाम की
इस दीवार के नीचे मेरे दिल को तू , कब तक दफ़न रखेगी
ठुकराले मेरी मोहब्बत……
मेरी मोहब्बत को तू आज, ज़माने की नज़र से देखती
कैसा है यह सौदा इसे दुनिया के तराजू में तोलती
क्या है इसमें फायदा या घाटा इसे बार बार सोचती
एक दिन यही सौदा तुझे भारी पड़ जाएगा
क्या करेगी उम्र के उस मोड़ पर
जब कोई भी रिश्ता काम ना आएगा
मोहब्बत का लगाया था, तू ने गलत मोल
उस दिन तुझे समझ आएगा
तब अपने दर्दे दिल का हाल, तू किससे कहेगी
ठुकराले मेरी मोहब्बत……
जिस ज़माने की रुसवाई की आज , तुझे इतनी फ़िक्र है
एक दिन तू खुद, इसके खिलाफ लड़ेगी
शायद उस वक़्त तुझे ,मेरी परछाई भी ना मिलेगी
क्या होगा इन जंजीरों का, जो आज तूने नहीं तोड़ी
कैसे इनका बोझ पूरी जिन्दगी ढोती रहेगी
जब झुकी होगी तेरी कमर , पिचके हुए होंगें गाल
लड़खड़ाती चाल पर बस , एक लकड़ी का होगा साथ
तब बिना किसी के साथ के, तू कैसे चलेगी
चेहरे की झुरियां उड़ाएंगी, तेरे मेकअप का मजाक
फैला हुआ शरीर लेगा अनजाने से हिसाब
कांपते होंगे हाथ और आँखों पर टिका होगा चश्मा
पोपले मुह में कहीं अटका होगा नकली जबड़ा
कैसे ऐसे सितम को तू अकेले सहन करेगी
ठुकराले मेरी मोहब्बत……
जो एक नज़र में हो जाए वह मोहब्बत नहीं होती
ऐसी हिमाकत तो बस जवानी में ही होती
करे कोई तेरा इंतजार शिद्दत से ,उम्र के इस दौर में भी
आँखे बिछाये बैठा हो , तेरे इंतजार में आज भी
ऐसी मोहब्बत की इबादत , हर किसी से नहीं होती
पक्की उम्र में मोहब्बत बामुशिक ही किसी से होती
खुदा के इस तोहफे का, तू तिरस्कार कब तक करेगी
ऐसी मोहब्बत को तू अनदेखा कब तक करेगी
ठुकराले मेरी मोहब्बत……
By
Kapil Kumar
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