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दशहरे के पावन पर्व की संध्या पर जब अमृतसर के लोग अच्छाई पर बुराई की जीत के साक्षी बन रहे थे,उन्हें इस बात का कतई अंदाजा नहीं होगा की कलयुग का रावण एक ही पल मैं उन्ही की जीवन लीला समाप्त कर देगा. दिल को झकझोर देने वाली इस घटना की कल्पना मात्र से ही मन सिहर उठता है. पर सवाल फिर एक बार वही है, कहाँ है वो रावण फिर एक बार आरोपों प्रतयारोपों का दौर चलेगा, मनुष्य के जीवन की कीमत चंद रुपयों मैं तोली जाएगी और किसी को इस मार्मिक घटना मैं भी वोट दिखेंगे. कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य सा हो जायेगा, और हम ऐसी घटना की पुनरावृत्ति का इंतज़ार करंगे, पर एक सवाल फिर भी मन मैं गूंजता रहेगा कि कहाँ है वो कलयुग का रावण, आखिर दिखता कैसा है वो, क्यों हम हर बार दहशरे मैं उस कलयुग के रावण का अंत नहीं कर पाते?
घटना के दौरान सामने आये हुए चलचित्रों में से एक में आयोजकों द्वारा मंच से आह्वान किया जा रहा था की ये सब लोग जो हर्षोउल्लास के साथ इस पावन पर्व को मनाए के लिए आयें हैं, वो किसी भी पल ५०० रेलगाड़ियों के नीचे अपने जीवन की आहुति दे सकते है, और कुछ ही पल मैं ये कथन सच साबित हो गया और वो भोले भाले लोग अकाल ही काल के गाल मे समां गए. ये मार्मिक घटना सोचने पर मजबूर कर देती है की क्या वाकई आम आदमी की जिंदगी इतनी सस्ती है? उन नादान बच्चों का क्या कसूर था जो शायद जिद करके अपने माता पिता के साथ कुछ पल की खुशी मानाने वहां गए होंगे.
आरोप प्रत्यारोप के इस दौर मैं लोग भूल गए की इस देश कि इतिहास में ऐसे भी उदारण रहे हैं की जब एक रेल दुर्घटना की जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा दे दिया था. आज के युग मैं इसकी कल्पना करना भी बेईमानी होगी. पर फिर भी सवाल यह है की क्या कोई इस बात का आश्वासन दे सकता है की इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति देश के किसी भी हिस्से मैं नहीं होगी.
आखिरकार सारे सवालों का जवाब बस एक ही सवाल मैं निहित है की कलयुग का वो रावण है कहाँ जिसने दशहरे के दिन ६० लोगों की चिता जला दी और हज़ारों लोगों की घर मैं इस दिवाली से पहले ही अँधेरा कर दिया.
जवाब हमारे मन में ही छिपा है, बस झांक कर देखने मात्र की जरुरत है क्यूंकि ये कलयुगी रावण दशमुखी नहीं हज़ार मुखी है!!!
कार्तिकेयपंत
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