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राजनीतिक उपेक्षाओं को सहता विकास से वंचित बिहार का मिथिलांचल

अमराई
अमराई
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जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता जनता का सेवक होता है, जिसे जनता अपने जीवन के विकास के सभी पहलुओं में अग्रणी बनाने के लिए चुनती है। अगर हमारे देश में राजनीती साफ सुथरी होती और ये जनता की सेवा और देश के विकास के लिए की जाती, तो आज हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में सर्वोच्च स्थान पर होता। लेकिन राजनीती में जनता द्वारा चुना हुआ नेता जनता का प्रधान सेवक बनने के बजाय जनता का शासक बन बैठता है। अधिकतर नेतागण अपने देश, राज्य और संसदीय क्षेत्र का विकास करने के बजाय अपना और अपने परिवार का सर्वांगीण विकास करने में जुट जाते हैं। चुनाव के समय जो हाथ वोट मांगने के लिए जुड़े रहते हैं, वही चुनाव के बाद खुल जाते हैं और उन्ही हाथों से नेता आम जनता का शोषण करने लगते हैं।

राजनीति के तमाम उतार चढ़ाव और भांति-भांति के दांव पेंच देखने वाला राज्य बिहार, विकसित राज्यों की श्रेणी में किसी भी मापदंड पर खरा नहीं उतरता। शिक्षा, कानून व्यवस्था, परिवहन, स्वच्छता, स्वास्थ्य, रोजगार, उड्डयन, सड़क ,महिला और बाल कल्याण, इन सभी क्षेत्रों में बिहार की स्थिति ख़राब है और उनमें मिथिलांचल प्रान्त की स्थिति अत्यंत दयनीय है। बिहार राजनीती के नाम पर कभी भी पिछड़ा या उदासीन नहीं रहा, बल्कि इस राज्य ने भारत को प्रथम राष्ट्रपति और उनके बाद कई दिग्गज नेता दिए हैं। वर्तमान में भी सबसे ज्यादा लोक सेवा आयोग में चयनित अधिकारी बिहार राज्य से होते हैं, फिर बिहार की हालत इतनी ख़राब क्यों है? इसका जवाब है – यहाँ के नेता, जो लोकसभा और विधानसभा के लिए जनता द्वारा चुने जाने के बाद वापस मुड़कर नहीं देखते। पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही परिवारवाद की राजनीती कर रहे ये नेता जनता को लगातार ठगते आ रहे हैं।

मधुबनी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सांसद हुक्मदेव नारायण जी को जमीन से जुड़े नेता की संज्ञा दी जाती है। जब भी वो संसद भवन में भाषण देते हैं, न्यूज चैनल और सोशल मीडिया में छा जाते हैं और लोग उनकी वाहवाही करते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इन्होंने अपने राजनैतिक फायदे के लिए बिहार की गरीबी और पिछड़ेपन का व्यवसायीकरण किया है। प्रदेश के जिस मिथिलांचल क्षेत्र की गरीबी की वो दुहाई देते हैं, उसी जिले में अपराध का यह आलम है कि एक सामान्य भूमि माफिया गिलास भर दारू के लिए पचास हजार का दंड भरने को तैयार रहता है। अपनी कलाकृतियों के लिए विश्वप्रसिद्ध, मधुबनी की नगरपालिका चौपट है और यहाँ व्यापारियों की लूट है। यहाँ बड़े से बड़े मान्यता प्राप्त शोरूम में भी केवल नकद लेनदेन ही होता है। इस क्षेत्र में एक भी बड़ा अस्पताल नहीं है और रोजगार के लिए यहाँ से युवाओं का अन्य राज्यों के बड़े शहरों में निरंतर पलायन होता आ रहा है। सडकों और परिवहन व्यवस्था की बात नहीं करें तो ही अच्छा है। बस एक बार स्वयं नेता जी सड़क मार्ग से अपने संसदीय क्षेत्र का दौरा कर लें, तो सारी हेकड़ी निकल जाये। मिथिलांचल क्षेत्र का दौड़ा बिहार के मुख्यमंत्री भी विरले करते हैं और अगर कभी गलती से प्रोग्राम बन भी गया तो साहेब हेलीकाप्टर से ही पहुंचते हैं, क्योकि यहाँ के सड़को की दशा इन्हे खुद नहीं पचती, अन्य नेताओ को क्या ही पचेगी। यही कारण है एक बार चुनाव जीत जायें, तो सांसद और विधायक अपना चेहरा दुबारा सिर्फ या तो शिलान्यास करने के लिए दिखाते हैं या फिर अगले चुनाव में बेशर्मों की तरह वोट मांगने के वक़्त दिखाते हैं।

यहाँ जिनके परिवार में राजनीती का व्यापार फल फूल रहा है, वो बिहार के इन्हीं पिछड़े इलाके से निकलकर दिल्ली तक पहुंच गए हैं, परन्तु बिहार आज भी उसी दशा में विकास की बाट जोह रहा है। बिस्फी विधानसभा से 3 बार निर्वाचित और मधुबनी संसदीय क्षेत्र से 2 बार सांसद रह चुके शकील अहमद जी वर्तमान में कांग्रेस के सचिव बने बैठे हैं, लेकिन बिस्फी विधानसभा और मधुबनी संसदीय क्षेत्र का विकास कभी काग़ज़ों पर भी नहीं हो पाया। विद्यालयों की दशा और शिक्षा का स्तर पहले ही बदतर हो चुका है। कहीं शिक्षक नहीं है, तो कहीं आदेशपाल नहीं है। कम्प्यूटर शिक्षा आज भी यहाँ के शिक्षण संस्थाओं से कोसों दूर है। लेकिन शकील अहमद साहेब कभी विदेश का दौरा करते पाए जाते हैं, तो कभी पंजाब चुनाव प्रचार की रैलियाँ करते दिखते हैं। ये वो नेता हैं जिनके खुद के आलीशान पुश्तैनी मकान तो आज भी इनके संसदीय क्षेत्र में हैं, लेकिन ये वहाँ सिर्फ पिकनिक मनाने पंचवर्षीय योजना के तहत आते हैं। जातिवाद की राजनीती का जहर घोलकर अपनी राजनीती चमकाने वाले शकील अहमद जैसे नेता आज के दौर के सेक्युलरवादी बने बैठे हैं, लेकिन विशेष समुदाय के लोग भी इनसे स्वयं को ठगा हुआ ही महसूस करते हैं।

ऐसी ही एक और विधायक हैं, भावना झा जो कि बेनीपट्टी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हैं। इनके पिताजी युगेश्वर झा जी इसी विधान सभा क्षेत्र से 80 और 90 के दशक में लगातार विधायक चुने गए। अपने राजनितिक कैरियर में 2005 में भी ये बेनीपट्टी विधानसभा से विधायक चुने गए और इन्होने इतनी शिद्दत के साथ बेनीपट्टी का बंटाधार किया है कि अब उनकी पुत्री के पास बेनीपट्टी को लूटने के लिए और कुछ बचा ही नहीं है और यही वजह है कि भावना झा जी अपने विधानसभा क्षेत्र से जीतने के बाद यहाँ मुहूर्त निकाल कर ही आती हैं और बाकी का समय पार्टी के लिए विभिन्न प्रकार का सम्मलेन और कांग्रेस मिलन समारोह इत्यादि आयोजित करने में बिताती हैं। अगर गलती से कभी इनके सोशल मीडिया यानि फेसबुक पेज पर चले जायें तो इनके सरकारी पैसों से अय्याशी वाली पार्टियों की असली झलक देखने को मिल जाती है। इनके द्वारा क्षेत्रीय पुलिस अधिकारियों को धमकाना और उनको ट्रांसफर की धमकी देना आम बात है। मिथिलांचल में अगर कोई बड़ी दुर्घटना या अपराध हो जाये तो वहाँ पहुंचकर कार्यवाही का जायजा और आश्वासन देने के बजाय ये मोहतरमा सेल्फी लेती हुई पायी जाती है। अगर ये कहा जाये कि भावना झा जी एक ऐसी विधायक हैं जो सिर्फ पेज -3 पार्टी करके अपना समय काट रही हैं, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

केवल मिथिलांचल ही नहीं, बल्कि बिहार के किसी भी क्षेत्रीय विधायक या सांसद का अवलोकन करेंगे, तो आपको यही हालत देखने को मिलेगी। बिहार की राजनीती जनता की सेवा के लिए कभी बन ही नहीं पायी, बल्कि ये दशकों से भाई भतीजावाद की राजनीती का व्यवसाय बनी हुई है। ये बिहार में एक ऐसा पेशा है, जिससे सत्ता की शक्ति और रुपयों के दम पर आम लोगों का शोषण किया जाता है। इसे विडम्बना कहिये या बिहार का दुर्भाग्य लेकिन मनोरंजन सिंह जैसा अपराधी जिसके ऊपर हत्या, हत्या का प्रयास और लूटपाट जैसे बीसियों केस दर्ज है, वो विधायक बना बैठा है। एक ताज़ा सर्वे के अनुसार बिहार के 76% विधायकों पर आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं और 72% से ज्यादा विधायक करोड़पति हैं। यहाँ समस्या जागरूकता की है और बिहार की जनता को यह समझना होगा कि उनके द्वारा चुने गए नेता उनके सेवक हैं और अगर वो उन्हें उनका हक़ नहीं दे पा रहे हैं, तो वो उन्हें सत्ता से बेदखल कर दें। वो किसी ऐसे को चुने जो उनके लिए काम करे और मिथिलांचल एवं बिहार के लिए विकास का मार्ग प्रसस्त करे। अगली बार जब ये विधायक उनके क्षेत्र में दिखें, तो जनता इनसे कड़े सवाल पूछे और इन्हे आइना दिखाए। बिहार की राजनीती में जिस दिन नेता खुद का भविष्य बनाने के बजाय जनता और बिहार के विकास के लिए काम करेंगे, असली मायने में बदलाव वहाँ से शुरू होगा और तब तक चाहे सरकार कितनी ही क्यों न बदले, यहाँ अंधकार और जंगलराज ही रहेगा।

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