अंतर्नाद
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सूख गए मधुवन
सूख गए मधुवन जीवन के
आशाओं की संध्या उलझी, शून्य क्षितिज के सूनेपन से |
नभ के चल घनश्याम घनेरे
चन्दा-मुख चूमते निगोड़े
झंझा के आते सब सपने, बिखर गए अपलक नयनन के |
विद्युत-बान गँसीले खिंचते
खिंचते ही मन-मृग जा बिंधते
कहाँ छिपे हृद-रेख गहन दे, वे संधान चपल चितवन के |
अंचल पावस-ऋतु बरसाते
गिरि-घाटी रस-पीन सुहाते
ओझल हो गए चटकीले-से, उगते ही सुरधनु उपवन के |
धरती धुलती जावक-जैसी
झड़ी रिमझिमी नूपुर-ध्वनि-सी
उचट गए बरखा के मेले, सच होते सपने सावन के |
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— संतलाल करुण
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