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हृदय सहचर

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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हृदय सहचर


तुम्हारा रूप था ऐसा

आह, कितना रहा सुन्दर !


तुम्हारा हृदय था निर्मल

मेरे मन का सहज सहचर |


तुम्हारे हाथ रखते थे

मेरे कर्मों से न अंतर |


तुम्हारे पाँव बढ़ते थे

मेरे संघर्ष के पथ पर |


तुम्हारा अंत ही दाहक

जलूँ दिन-रात रह-रहकर |


हवन-सी अनबुझी यादें

सँजोए आह भर-भरकर |


— संतलाल करुण

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