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दिल या ख़ुदा मिलता नहीं

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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दिल या ख़ुदा मिलता नहीं


दिल के मकाँ में यार कोई दिलकुशा मिलता नहीं

भीगा पड़ा है आशियाँ अब दिलशुदा मिलता नहीं |


हमने वफ़ा में बाअदब जानो-ज़िगर सब दे दिया

उनकी वफ़ा, चश्मो-अदा, दिल गुमशुदा मिलता नहीं |


उम्मीद हमने छोड़ दी उनकी इनायत पे बसर

ये ज़िन्दगी रहमत-गुज़र दिल या ख़ुदा मिलता नहीं |


उनकी वफ़ा के माजरे, बेबस्तगी पे क्या कहें

उन पे फ़ना दिल रोज़ होता दिल जुदा मिलता नहीं |


यों दिलज़दा मेरा फ़साना, दिल लगाना बेक़दर

जो लापता ढूढें कहाँ दिल गुम हुआ मिलता नहीं |


— संतलाल करुण

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