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माँ, बहन, बेटी के आँसू

अंतर्नाद
अंतर्नाद
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माँ, बहन, बेटी के आँसू


माँ, बहन, बेटी के आँसू पे यहाँ रोता है दिल

रोज़ लुटती अस्मतें, क़त्लों का ग़म ढोता है दिल |


आबरू को उम्रदारों ने भी बदसूरत किया

मर्दों का बचपन भी है बदकार बद होता है दिल |


शाहो-साहब औ’ गँवारों सब में बद शह्वानीयत

सब की आँखों में चढ़ा शर्मो-हया खोता है दिल |


है हुक़ूमत बेअसर बेख़ौफ़ हैं ज़ुल्मो-ज़बर

हर घड़ी हर साँस जैसे ख़ार पे सोता है दिल |


आज भी शै की तरह हैं घर या बाहर औरतें

बेरहम इंसाफ़ भी तेज़ाब से धोता है दिल |


— संतलाल करुण

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