सांस्कृतिक आयाम
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ये तो सपना था सज़ा क्यूँ हो गया?
जो यार था वो बेवफ़ा क्यूँ हो गया?
पूछिए दीवानों से बताएँगे वो
दर्द ही ख़ुद ही दवा क्यूँ हो गया?
जिसको बनने में लग गई मुद्दत
एक ही पल में तबाह क्यूँ हो गया?
अश्क़ जिसके थे मेरे मोती
आज मुझसे ही ख़फ़ा क्यूँ हो गया?
निकला जो ‘वाहिद’ दिल से आह का मिसरा
वो ख़ुदा के पास दुआ क्यूँ हो गया?
हम तो इसी बस्ती के वाशिंदे थे
आज हर चेहरा नया क्यूँ हो गया?
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