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आत्मा को रौंदता जा रहा
वो जो अपने कारनामों से देश पे कलंक लगा रहा
नेता कहते आती शर्म उसको
पर वो तो खुद को नेता ही बतला रहा
देश के स्वाभिमान को तार तार कर
सम्मान चाह रहा
आज का विकट समय
विकट है देशकाल
पहले मीरजाफर एक था
आज हर नेता मीरजाफर बनना चाह रहा
हर नेता कर रहा है आज राबर्ट क्लाइव की मदद
देशी कम्पनीयों पर अत्याचार बढाकर और विदेशियों का कर स्वागत
देश वालों से सौतेला व्यवहार किया जा रहा
पैसे की चाह में देश को लूटा जा रहा
बाकी सब
बाकी सब तो उनके लिए फिजूल है
बिल्कुल फिजूल
देश की जनता करती है आन्दोलन
तब ये नेता बहरें गंूगे हो जाते
और जब फूटता है जनता का आक्रोश तो उसे सह नहीं पाते
बाद को हांकते है लम्बी लम्बी ढींगे
हर नेता खुद को विकास पुरुष बतला रहा
खा रहा घूस हर नेता
अधिकारी भी कहां रहा इससे वंचित
ये जुल्मी नेता स्वयं को समझने लगा है देश का माई बाप
भूल बैठे हैं शहीदों की शहादत को
भगत को नौ दशक बाद शहीद नाम दिया जा रहा
भारत का नेता आज अपने को इतिहास बनाता जा रहा
अनेक वादो में उलझा रहा जनता को
कही भाषा कहीं जाति कहीं क्षेत्र
कहीं कुछ तो कहीं कुछ
जन को जन से लडा
लेते है सत्ता का आनंद
पिसती है भोली भाली जनता
पिसता है जनतंत्र
लगता लोकतंत्र कागजी हो गया है
जहाँ कागज के पुलिंदों में
कैद है कानून
कानून बनाते है
कानून बनाते है वो
जो अब तक कानून तोडते आये है
हर नेता स्वयं को व्यापारी
देश को मंडी बना रहा
-सत्येन्द्र कात्यायन
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