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बड़ी साजिश

गोल से पहले
गोल से पहले
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नरेंद्र मोदी का बिहार जाना, राजधानी पटना में हुंकार रैली को संबोधित करने के साथ उन सभी बातों का हिसाब करना जो पिछले कई वर्षों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाने-अनजाने छेड़ रखी थी, किसी महाविस्फोट से कम नहीं था। मोदी का कहा एक-एक शब्द बारूद सा असर करता। सुनने को बिहार ही नहीं, देश के हर प्रांत की जनता बेताब थी। मगर, ऐसा नहीं हो सका। मोदी पटना पहुंचे, बोले-गरजे, पर बमों के छोटे-छोटे सात धमाकों ने इस महाविस्फोट को दबा-सा दिया। अखबारों की लीड बदल गई, लोगों की जिज्ञासा की प्राथमिकता बदल गई। यह किसी शातिर दिमाग की बड़ी साजिश थी। किसकी थी, सोचिए। जब तक जांच जारी है, तब तक आइए हम उन हालात पर मशविरा कर लें, जो इन दिनों सरगर्म थे।

नरेंद्र मोदी को लेकर नीतीश कुमार ने एक जिद ठान रखी थी कि वे उन्हें बिहार नहीं आने देंगे। गठबंधन का भला हो, इसके लिए पिछले चुनाव में उनकी जिद मान भी ली गई। हालांकि, यह हैरतभरा था। जिस भाजपा के भरोसे उनकी सरकार बननी थी, उसी भाजपा के बिहारी कर्णधार चुपचाप इसे बर्दाश्त कर गए। क्यों, जवाब आज भी किसी को नहीं सूझ रहा। गठबंधन की सरकार बनी, पर अहंकार बदस्तूर कायम रहा। मोदी के खिलाफ नीतीश की जिद में कोई फर्क नहीं आया। वह दिन भी आया जब सिर्फ मोदी के खिलाफ नीतीश की इसी जिद की वजह से गठबंधन टूट गया।

पूरा देश गवाह है, बिहार में जदयू और भाजपा ने सीटों का तालमेल कर चुनाव लड़ा था। यानी जहां से जदयू का उम्मीदवार खड़ा था, वहां से भाजपा का उम्मीदवार नहीं था। यानी वहां भाजपा के समर्थक मतदाताओं ने जदयू को वोट दिया। जहां से भाजपा का उम्मीदवार खड़ा था, वहां जदयू का उम्मीदवार नहीं था। यानी वहां जदयू के समर्थक मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया। अब गठबंधन टूटा तो क्या इन जीतों को भी बर्खास्त नहीं समझ लेना चाहिए था? मगर, ऐसा नहीं हुआ। भाजपा सत्ता से बाहर हो गई और जदयू की सत्ता बरकरार रही।

गठबंधन टूटने के बाद भी नीतीश का मोदी प्रलाप जारी रहा। वे दलीलें पेश कर रहे थे। यहां तक कि उनकी दलीलों से उन्हीं की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी आजिज दिखे। अब तो वे सुशील मोदी के खिलाफ भी जहर उगलने लगे थे। उस सुशील मोदी के खिलाफ, जिनके भरोसे और जिनके कंधे पर सवार होकर उन्होंने सत्ता संभाली थी। जेपी का यह शिष्य सारा श्रेय खुद लेने की एक ऐसी होड़ में पड़ा दिखने लगा, जो कल्पनातीत था। कांग्रेस के कंधे पर सवार होने की उनकी उत्सुकता से पूरा प्रदेश अब तक हैरान है।

…और इसी बीच तय हो गई नरेंद्र मोदी की पटना में हुंकार रैली। एक बहुप्रतीक्षित घटना। लोग न जाने इस पल को देखने-सुनने और गुनने का कब से इंतजार कर रहे थे। मोदी को बिहार नहीं आने देंगे की जिद टूट रही थी, टूट चुकी थी। नजरें टिकी हुई थीं कि आखिर पटना में मोदी क्या बोलेंगे। लोगों को लग रहा था कि मोदी कुछ ऐसा बोलेंगे कि नीतीश के सारे कश-बल ढीले पड़ जाएंगे। उत्सुक निगाहें, जिज्ञासु मन… मगर यह क्या, ताबड़तोड़ विस्फोट… नजारा ही बदल गया…।

विस्फोट किसने कराया, इसके पीछे किसकी साजिश थी, इस पर पटना पुलिस ने त्वरित ढंग से कुछ प्रकाश डाले हैं। गिरफ्तारी भी हुई हैं, भटकल के साथियों पर शक जा रहा है, ४८ घंटों में खुलासे का दावा किया जा रहा है। हो सकता है, जब आप इस आलेख को पढ़ रहे हों तब तक पूरा खुलासा हो चुका हो, पर एक बात तब भी आपके जेहन में जरूर गूंजती रह जाएगी। वह यह कि इन विस्फोटों ने एक महाविस्फोट की गूंज को दबा दिया, उसकी तासीर को कम कर दिया…। कर दिया कि नहीं?

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