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बचपन का फलसफा जवानी में, जवानी का बुढ़ापे में और बुढ़ापे का मरने के बाद काम नहीं आता। वाक्य विन्यास कुछ कौतूहल पैदा कर रहा होगा। पर, क्या करें, चिंतन कुछ इसी ओर खींच रहा है कि इस पर कुछ गुफ्तगू करूं। लोग कहते हैं, सुना है, पढ़ा है, कुछ देखा है, कुछ जाना भी है कि स्थितियों के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। हम, आप न भी बदलें तो क्या? मगर इस दुनिया में यदि कुछ स्थायी है तो कहते हैं कि वह परिवर्तन ही है, जो स्थायी है। चेंज इज द रूल आफ नेचर। पर, क्या हम खुद को बदल पाते हैं? या सिर्फ दूसरों में ही बदलाव ढूंढ़ते रह जाते हैं।
एक हादसा हुआ। समझ लीजिए मेरे ही साथ हुआ, क्या फर्क पड़ता है। हादसे तो होते ही रहते हैं। पर, एक हादसा कई सबक दे जाता है। लोग गिरते हैं, मरते हैं, कुछ लोग बगल से सर्र से निकल जाते हैं, अपना धुन, अपनी मस्ती, फर्क नहीं पड़ता। पर ठहरिए, उन लोगों के बारे में सोचिए जो हादसे को देखकर सर्र से नहीं निकलते, रुकते हैं, दौड़ते हैं, डाक्टर को बुलाते हैं, अपना सारा काम भूल गिरने वाले का दर्द खुद के सीने में महसूस करते हैं, हादसे के शिकार व्यक्ति का उपचार कराते हैं, उसे अस्पताल या फिर उसके मुकाम तक पहुंचाते हैं। एक जीवन बचता है। एक संग्राम को सुंदरता मिलती है। उसे परवान चढ़ने का मौका मिलता है। तो कोई जरूरी नहीं कि इतनी बातें महसूस करने के लिए आप किसी हादसे का शिकार हों और जब कोई आपका उपचार कर दे तब जाकर तीमारदारी की इज्जत आप कबूल करें। बिना हादसे का शिकार हुए भी तो यह सबक लिया जा सकता है। हादसे का शिकार मैं हुआ। सबक मुझे मिला। इसे आप अपना बना लीजिए।
हादसे की अंतिम परिणति मौत का शक्ल लेकर आती है। न जाने कितने लोग रोज हादसे का शिकार होते हैं और खत्म हो जाते हैं। सारे फलसफे खत्म, सारा किस्सा तमाम। मगर कुछ लोग हैं जो बच जाते हैं। मान लीजिए, जैसे कि मैं बच गया। अब बच गया तो बच गया। फिर? दर्द को मरहम चाहिए, चोट को सेंक चाहिए, दिल को तसल्ली, आंखो को भविष्य और कायदे में दोस्त चाहिए। कुछ चीजें आपने दुकान से खरीद ली, डाक्टर को फीस दी, इलाज करा लिया पर तसल्ली और दोस्त कहां से खरीदेंगे? अब यह तड़प भी बड़ी होती है। एक-एक का इंतजार, लब्जों का, कालों का, एसएमएस का, आने का, जाने का, किसने पूछा, किसने नहीं पूछा, किसने हमदर्दी जताई, किसने नहीं जताई, किसने मदद पहुंचाई, किसने नहीं पहुंचाई, कौन भाई की तरह पेश आया, कौन सा भाई दुश्मन की तरह। तो तड़प का सबक भी देता है हादसा। आपके इर्द-गिर्द, आपकी जान-पहचान में कोई हादसे का शिकार हो जाए और बच जाए तो उसकी इस तड़प को मिटाने के लिए दौड़ पड़िए… और ख्याल रहे कहीं देर न हो जाए, इसलिए पहले पहुंचिए। जारी….
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