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माँ का घर

kavita
kavita
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जिस जगह माँ जन्मी हो वह जगह माँ से कम प्रिय कैसे होगी, जिसे नाना का घर कहते हैं वह घर हकीक़त में तो माँ का घर होता है !! कल वहीँ चले गए थे जहाँ दो बखरी के विशाल खपरैल केघर की जगह उससे भी बड़ा पक्का घर मिला लेकिन उस कच्चे घर. की वो बात नहीं मिली सब कुछ मिला लेकिन वह सोंधापन नहीं मिला…..

नानी का घर वो अभेद्य किला है
जो स्मृतियों के प्रकोष्ठों
और प्राचीरों से बना है

कितनी सुदृढ़ हैं दीवारें इसकी
और परकोटे कितने ऊंचे
और प्रेम गवाक्षों से छन छन के आती
मंद मधुर मनोहर रस गंध सिक्त
स्मृतियों की वो हवा
जो आती है तो साथ ही लाती है
वो गन्ध कच्चे दूध की
जोकभीमाँ के आँचल से
लिपट जाने पे आती थी

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