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सृजन

kavita
kavita
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एक दुल्हन साँझ की लाल कपड़ों में सजी
खो चली ले कर कहीं अपना वज़ूद
संबंधों के सभी नश्तर लिए दिल में
चुपचाप सन्नाटों में सभी सिसकी दबाये

संगीत का हर सुर करुण रस में क्रंदन सुनाये
डूब कर हर विषमता के अँधेरे में वही फिर
क्षितिज पर ले कर बाल सूरज आये
अन्धकार से उपजता

दमकता माँ के रूप से
कौन कह सकता है

डूबती साँझ का प्रतिबिम्ब है
जो कभी अन्धकार की तूलिका से

उसने सृजन किया है

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