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वर्जनाएं

kavita
kavita
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वर्जनाओं में बन्धी ज़िन्दगी;
जब भी तोड़ती है श्रृंखला ,
उमड़ती वेग से, बहा ले जाती है
साथ ,सभी वर्जनाएं ,
साथ ही सभी मर्यादाएं ;
जैसे तटबन्ध तोड़ती नदी,
टूटते बाँध ;
वेग नही देखता सीमाएं ,
बहा ले जाता है सभी कुछ ,
अच्छा -बुरा, जीव- निर्जीव
वेग को बहाव दो
सीमित, संतुलित बहाव ,
बांधो मत;
समझो तो ,दिशा उसकी,
मोड़ देना है?दो….
मगर धीरे से ,हौले हौले..
वर्जनाएं ही तो हैं ,
कांस्य कलश ,
कभी चांदी ,
कभी सोने के कलश , जंजीरें …
और अस्तित्व औरत का ?
घड़ा ..मिटटी सा,
चुप चाप ,सांस थामे ,
बैठे रहे (दुबके रहे )छाँव में ,तो सही ;
टकराये या राह बदल ले ,
सम्भव नही होता हरदम
तो विनाश तो तय है…
वेग ठहर सकता है ,पल दो पल,
रुक नही सकता
बहता है- बहने दो ,
अन्यथा विनाश को आमन्त्रित कर
विनाश पर क्रंदन क्यों…

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