काव्य सुरभि
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रह रह कर हम आ जाते हैं फिर वादों की घातों में
तुमको ढूंढा करते हैं हम यादों की बारातों में।
इस दिल का आलम क्या कहिए, जबसे वो मेहमान हुए
प्यासी नदिया सी तड़पूं मैं, हाय भरी बरसातों में।
मेरे दिल से उसके दिल तक वो इक राह जो जाती है
आहिस्ता आहिस्ता लाई पास हमें जज़्बातों में।
तू खारा है मैं मीठी हूंं, नदिया कब ये कहती है
सागर में घुलमिल जाती है, उल्फ़त के हालातों में।
तेरी बाहों के घेरे में, प्रीति ने चारों धाम किए
दर्द ने चैन जरा पाया है तेरी मीठी बातों में।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं। संस्थान का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
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