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भाषाओं के सम्मेलन में अंग्रेजी इठलाई
बोली सुई से जहाज तक सारी चीजें मैंने बनाई
और दुनिया की सम्राज्ञी कहलाई
गर्व से बोली अंग्रेजी
मेरा लोहा तुम सभी मानो
तभी खैर अपनी जानो|
जर्मन को क्रोध आया, भड़क कर बोली
मैंने कभी न की तेरी गुलामी
मैं हमेशा रही स्वाभिमानी
बोली एटम बम का गणित मैंने ही बनाया
री इंग्लिश ज्यादा न इतरा
लगता है तेरा अंत करीब आया|
जापानी आगे आई, थोड़ा लजाई, सकुचाई
बोली नागासाकी, हिरोशिमा के बाद
मैंने भी अपनी ताकत खूब बढ़ाई
अब नहीं कर सकता कोई मनमानी
मैं भी हूँ अपने क्षेत्र की रानी
कम्प्यूटर माइक्रोप्रोसेसर चिप की
तकनीक अगर हो पानी
तो तुम्हें सीखनी होगी जापानी|
तभी किसी ने हिन्दी को उकसाया
कि तेरी क्या है माया?
इंग्लिश बीच में ही बोल पडी….
अरे ये क्या कहेगी, ये तो हो चुकी जर्जर
इसकी कोई तकनीक नहीं, है हम पर ही निर्भर
इसका अब नहीं रहा मान,
ये तो इंग्लिश बोलने में ही समझती अपनी शान
इंग्लिश बोली इसके घर तो अब मेरा ही बोल बाला है
और इसका भविष्य तो नितांत काला है
सभी ने किया इंग्लिश का समर्थन
और उस सम्मलेन में व्यथित हुआ हिन्दी का अंतर्मन|
हिन्दी सोच रही है और कोस रही है,
उस अकर्मण्यता को, अशिक्षा एवं भ्रष्टाचार को
जिसने उसके रक्त को कर दिया है प्रदूषित
और उसके सौन्दर्य, प्रतिभा एवं पुरातन समृद्ध वैभव को
जिसने किया है अवशोषित|
हिन्दी बोली जर्जर नहीं लाचार नहीं
मैं अक्षर अविनाशक हूँ….
विध्वंस की नहीं शान्ति की उपासक हूँ
जब पाश्यात्य के अन्धानुकरण में
तुमको हों तरह तरह के रोग
तो कर लेना हमारे प्राचीन पंतजली योग
याद करो उस काल को जब
अशोक ने शान्ति की शिक्षा चारों ओर फैलाई थी
और सभी ने कर्मण्ये वाधिकारस्ते की दीक्षा यहीं पायी थी
सम्मलेन के तानों से व्यथित हिन्दी ने हुंकारा लगाया
अरे दंभियों तुमने जो कुछ भी है बनाया
वह सब है परम शून्य में समाया
और याद रखो, ये शून्य हिन्दी ने ही बनाया
अन्धेरा अब छटने को है
और सतत निर्माण को आतुर है हिन्दी
धैर्य रखो आने वाले समय में देश ही नहीं
विश्व के ललाट पर चमकेगी यह बिंदी
सम्मेलन में तब गहन मौन था छाया
और सभी ने हिन्दी का जयकारा लगाया|
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