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हम सभी क्रांति और क्रांतिकरियो के मूल स्वरूप में ही बदलाव के साक्षी बन रहे हैं , वास्तव में पिछले कुछ वर्षों क्रांतिकारियों ने क्रांति को समाज के परिवर्तन के लिए नहीं बल्कि अपने निजी महत्वकांशापूर्ति का साधन बना लिया है, अब अगर हम इन लोगों को क्रांतिकारी कहेंगे तो हमारे वास्तविक क्रांतिकारियों का अपमान होगा, इसलिए इनको ‘ मिथ्या क्रांतिकारी ” कहेंगे | वैसे एक बात हैं जिसके लिए हमे इन ” मिथ्या क्रांतिकारियों “का शुक्रिया करना चाहिए की इन्होने हमे स्पष्ट कर दिया है की भैया पूर्ण कलयुग आ गया है ,जरा संभल कर |
” मिथ्या क्रांतिकारियों ” के निजी उद्धार का सफर के साक्षी के रूप में एक छोटी सी कविता —
हमने क्रांति और क्रांतिकारियों के अर्थ को बदलते देखा है
क्रांति की मशालें को हमने पार्टियों के झंडों में बदलते देखा है ,
बदलाव और क्रांति के बोलों को हमने पार्टियों के जयकारों में बदलते देखा
है ,
बदलाव और क्रांति को हमने सियासत के आगे झुकते और बिकते देखा
है ,
अब और आगे
समय बीता और मिथ्या क्रांतिकारियों की लालसा बढ़ी
पार्टियों के झंडों को हमने नेताओं और मंत्रियों के हाथों से बदलते देखा है राष्ट्रीय , समाज और पार्टियों के प्रति निष्ठा को सत्ताधारियों की कुर्सियों के इर्द -गिर्द घुमते देखा है ,
अब और आगे
हम सब व हम साथ की एकता को हमने ” मैं ” के अहम के आगे हारते देखा है ,
जनहित के शब्दों को हमने सत्ताधारियों की वाह -वाह में बदलते देखा है ,
क्रांतिकारियों के सिद्धांतों और उसूलों को हमने कुर्सी और सत्ता की महत्वकांशाओ के समक्ष हारते देखा है ,
सत्य और राष्टीवाद के कथित उपासकों को हमने सत्ताधारियों की आरती करते देखा है ,
मिथ्या क्रांतिकारियों के सफ़ेद कपड़ों को हमने मंत्रियों और नेताओं के आशीर्वाद से खद्दर में बदलते देखा है ,
सत्ताधारियों के प्रति आलोचनाओं और शबदबानों को हमने तारीफों के पुलों में बदलते देखा है |||
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