Menu
blogid : 12015 postid : 762830

वेदों से बड़ी है राम चरित्र मानस?

आक्रोशित मन
आक्रोशित मन
  • 44 Posts
  • 62 Comments

क्या रामचरित्र मानस वेदों से अधिक महत्व रखता है? इस समर्थन में एक किस्सा प्रशिद्ध है की काशी में जब पंडितो ने मानस की परीक्षा लेनी चाही तो उसको वेद पुराणों के साथ रख दिया , सबसे नीचे मानस रखा गया,उसके ऊपर पुराण और फिर वेद। ऐसा करके मंदिर के पट बंद कर दिए गए ,सुबह जब मंदिर खोला गया तो मानस सबसे ऊपर था और वेद पुराण नीचे।
इस कहानी से यह बताया जाता है की मानस वेदों से उच्च स्थान रखते हैं, तुलसी दास जी वेदों को मानस से कमतर समझते थे ,इसलिए वेदों के पर्यायवाची शब्द ‘श्रुति’ से अपने साहित्य को ऊँचा दर्जा दिलाने की बात भी कर दी ,देखे-

‘ चहुं जुग चंहु श्रुति नाम प्रभाऊ ,कलि विशेष नहीं आन उपाऊ'(बाल कांड, 22/8)

अपने राम चरित्र मानस को वेद सम्मत बताने के लिए कहते हैं
सम जम नियम फूल फल ग्याना, हरि पद रति रस वेद बखाना( बाल कांड, 37/14)

तुलसी दास जी ने अपने राम चरित्र मानस को वेदानुकुल बनाने के लिए तुलसी दास जी मानस में 109 स्थान पर वेद शब्दों का प्रयोग किया यही नहीं तुलसी दास वेदों को भी राम गुण गाने विवश कर देते हैं ,वह लिखते हैं-

सेस सारदा वेद पुराना ,सकल करहीं रघुपति गुनगाना (बाल काण्ड,108/6)

तुलसी बाबा ने इससे भी आगे बढ़ के वेदों को राम के सामने पुरुष (भाट) भेष धर के आने और राम की स्तुति गाने पर विवश कर दिया देखे-

सब के देखत बेदन्ह बिनती किन्ही उदार,
अंतर्ध्यान भय पुनि गए ब्रह्म आगार (मानस, उत्तर कांड 13 /1)

इसके आलावा राम विवाह में भी वेद विप्र का रूप रख के आते हैं और विवाह सम्पन्न करवाते हैं।

‘ बेद सब कहि बिबाह बिधि देहीं ( बाल कांड, 323)

यानि कहने का मतलब यह है की तुलसी बाबा ने अपने राम और मानस से ऊपर ही रखा है, अब साधारण हिन्दुओ के सामने यह विकट प्रश्न आ जाता है की वह किसकी बात माने तुलसी जी की जो कहते हैं की मानस और राम वेदो से बड़े हैं या वेदों के निराकार ईश्वर को माने जो कभी अवतार नहीं लेता?

Read Comments

    Post a comment