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हमारे थोथे आदर्श?

आक्रोशित मन
आक्रोशित मन
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हमारे थोथे आदर्श

अधिकतर लोगो की शिकायत रहती है की मैं धर्म या भगवान् को लेके नकारात्मक विचार रखता हूँ, जिन्हें अधिकतर लोग भगवान् मान के उनके आदर्शो गुण गाते हैं उनके बनाये आदर्शो पर चलने की प्रेरणा लेते है मैं उन्ही के आदर्शो को नकारता हूँ।

यह सही भी है, मैं ऐसे आदर्शो को अपना आदर्श बनाने से हिचकता हूँ, क्यों की हमारे तथाकथित आदर्श ऐतिहासिक से अधिक पौराणिक पात्र ज्यादा लगते हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, कृष्ण, गणेश, हनुमान, दुर्गा आदि पौराणिक पात्र ज्यादा लगते हैं ।फिर भी यदि इन्हें एतिहासिक मान भी लिया जाए तो दुर्भाग्य से इन आदर्शो का बहुत कुछ स्वरूप ऐसा रहा है की इनको अपना आदर्श मानाने में कठिनाई होती है । ये आदर्शो निर्बल और पददलित वर्ग के प्रतिनिधि कभी नहीं रहें , वे या तो क्षत्रिय वर्ग से रहें है या ब्राह्मण वर्ग से । उन्हें पददलितो की पीड़ा का कोई भान नहीं था , शोषित वर्ग को न्याय दिलाने में उनकी कोई रूचि नहीं थी। उच्च वर्ग द्वारा निर्मित जो दलित वर्ग के लिए भेद और घृणा थी उसके खिलाफ कभी वे लड़े ही नहीं।

ये आदर्श ऐसे थे जो थोपे हुए थे , ये सभी वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे बल्कि एक वर्ग विशेष के स्वार्थो की पूर्ति के लिए ही अवतारित होते थे।

इसके आलावा इन आदर्शो में चारित्रिक विसंगति भी रही जिनका अनुशरण नहीं किया जा सकता। राम का छल से युद्ध जीतना, कृष्ण का कौरवो के साथ छल, विष्णु का जालन्धर के साथ छल, शिव का मोहिनी के पीछे भागना आदि चरित्र समाज में सही उदहारण पेश नहीं करते।

इन आदर्शो की विसंगतियां समाज को ज्यो की त्यों मिली , जब तक हम अध्यात्मिक व् धार्मिक उपलब्धिय में रहें तब तक हम आचरण से हीन रहे और जब संकुचित ढंग से आचरण संभाला तब थोथे आचरण में ही रह गए ज्ञान को भुला बैठे। यही कारण है की
हमारे व्यक्तितिव का स्वस्थ स्वरूप नहीं बन पाया, कंही न कंही विकृति अवश्य रही है।
चाहे वे राजनैतिक , बौद्धिक वर्ग हो या गरीब अशिक्षित वर्ग सब में यह विसंगतियां जरुर मिल जाएँगी।

इसलिए मुझे इन आदर्शो को अपना आदर्श मानाने में कठिनाई होती है।

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