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दो घनाक्षरी छंद

शंखनाद
शंखनाद
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(१)
नैनों में अंगार भरो, कर में कटार धरो,
बढ़ चलो बेटों तुम, बैरियों को मारने।
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धरती भी कहती है, गगन भी कहता है,
अब तो हवा भी जैसे, लगी है पुकारने।
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भलमानसत को वो, कमजोरी बूझते है,
चलो आज सारा नशा, उनका उतारने।
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मनुजों के वेश में वो, दनुजों के वंशज हैं,
दौड़ पड़ो पापियों के, वंश को संहारने॥
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(२)
वीरों को ही पूजते हैं, देश-दुनिया में सभी,
बालकों, युवाओं यह, सीख लो अतीत से।
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रिपुओं के जड़मूल, का सफाया कर डालो,
दिल से निभाओ प्रीत, हरदम मीत से।
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जीवन में क्षण ऐसे, मिलते हैं कभी-कभी,
जान पड़ती है प्यारी, हार जब जीत से।
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पढ़ना सिखाना शुरु, नौनिहालों को करो तो,
शुरुआत होए सदा, किसी देशगीत से॥

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