Menu
blogid : 9509 postid : 732101

दोहा मुक्तिका – हम तो बने पतंग

शंखनाद
शंखनाद
  • 62 Posts
  • 588 Comments
भाव सभी पाने लगें, शब्दों का यदि संग।
जाने इस संसार का, क्या होगा तब रंग।
तम के कारागार में, अरसे से हैं आप,
हँस लेते कैसे सदा, देख हृदय है दंग।
नयी समस्या आ रही, मुँह बाये क्यों नित्य,
बदल जरा देखो प्रिये, अब जीने के ढंग।
कितने हैं जो पा रहे, प्रेम-नगर में शांति,
अपनी मित्रों बन गई, एक रात ही जंग।
अधरामृत कब के पिया, अबतक चढ़ा खुमार,
जबकि उतर जाती रही, कुछ घंटों में भंग।
उसने भी लगता किया, कभी अंधविश्वास,
घूम रहा है आजकल, मारा, नंग-धड़ंग।
डोर किसी के हाथ में, घाती चारों ओर,
“गौरव” पूछो हाल मत, हम तो बने पतंग।

भाव सभी पाने लगें, शब्दों का यदि संग।

जाने इस संसार का, क्या होगा तब रंग।

.

तम के कारागार में, अरसे से हैं आप,

हँस लेते कैसे सदा, देख हृदय है दंग।

.

नयी समस्या आ रही, मुँह बाये क्यों नित्य,

बदल जरा देखो प्रिये, अब जीने के ढंग।

.

कितने हैं जो पा रहे, प्रेम-नगर में शांति,

अपनी मित्रों बन गई, एक रात ही जंग।

.

अधरामृत कब के पिया, अबतक चढ़ा खुमार,

जबकि उतर जाती रही, कुछ घंटों में भंग।

.

उसने भी लगता किया, कभी अंधविश्वास,

घूम रहा है आजकल, मारा, नंग-धड़ंग।

.

डोर किसी के हाथ में, घाती चारों ओर,

“गौरव” पूछो हाल मत, हम तो बने पतंग।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply