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प्रणय काव्य – मोती मेरे आते कल का

शंखनाद
शंखनाद
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तेरे नयनों के सागर में
मोती मेरे आते कल का
.
आज अचानक गहराई में
उतरा तो ये जान सका मैं
विशालता थी, दृश्य अनोखे
तैरा जीभर, नहीं थका मैं
बाहर आया खिले हृदय से
पाया सुंदर तट काजल का
.
मस्त पवन सी पलकें चलतीं
शीतल अंतस हो जाता है
भावों का ये ज्वार देख के
सुध-बुध सारा खो जाता है
मौन तरंगें बता रही हैं
आकर हाल हमें पल-पल का
.
संस्कारों की लहर निरंतर
साज सुहाने बजा रही है
शील, भरोसे की स्थिरता भी
बार-बार मन लुभा रही है
छिपा हुआ था प्रणय निवेदन
मीन-लाज के आते छलका

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