Menu
blogid : 9509 postid : 284

प्रेम की परिभाषा

शंखनाद
शंखनाद
  • 62 Posts
  • 588 Comments

“प्रेम” एक ऐसा शब्द जो अपनेआप में इस पूरे संसार को समेटे हुए है और जिसको किसी सीमा में बाँधने की कोशिश अपने दिमागी दिवालियेपन का प्रमाण देने के अलावा कुछ भी नहीं है किन्तु आजकल कुछ संकुचित बुद्धि लोगों ने इस सारगर्भित शब्द के अर्थ को अपनी निजी वासनाओं के दायरे तक सिमटा दिया लगता है| इस शब्द का उपयोग वो अपनी निजी जरूरतों के हिसाब से करते हैं और इस शब्द में छुपे मूल भाव की खुलेआम उपेक्षा करते हैं| जिनलोगों ने कभी इस शब्द की आत्मा को नहीं समझा वो अपनेआप को इसका सबसे बड़ा वाहक और पैरोकार बता के पूरी दुनिया में अपना और इस विराट शब्द का तमाशा बनाये घूमते फिरते हैं| इसका ताजा उदाहरण हाल में हुए केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में पुनः मंत्री बनाये गए शशि थरूर जी हैं जो अपने काम से ज्यादा अपने बयानों और अपनी हाई-फाई स्टाइल के लिए चर्चा में रहते हैं| उन्हें जिन कारणों से हटाया गया था उन कारणों पर बिना क्लीनचिट मिले उन्हें कैसे वापस लिया गया ये तो एक अलग विषय हो सकता है परन्तु आते-आते उन्होंने अपनी रंगत दिखानी शुरू कर दी है| हमेशा की तरह उनका नाम फिर से विवादों की वजह से चर्चा में आ चुका है जिनमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ हुआ उनका वाकयुद्ध मुख्य है| चुनाव प्रचार के दौरान मोदी जी ने उनपर चुटकी लेते हुए कहा था कि – ” कहीं देखी है ५० करोड़ की गर्लफ्रेंड?” इस सन्दर्भ में लिया गया मामला तब का था जब थरूर जी के ऊपर क्रिकेट (आईपीएल) के जरिये पैसा कमाने का आरोप लगा था और उनकी वर्तमान पत्नी और तात्कालिक गर्लफ्रेंड सुनंदा जी के पास ५० करोड़ के शेयर थे| बात साधारण सी थी किन्तु संभव है की किसी को बुरा लग जाये| शशि साहब को भी बुरा लगा| किन्तु जवाब में उन्होंने जो बात कही उससे हर किसी को बुरा लगना चाहिए| उनके अनुसार – “उनकी बीवी बेशकीमती है और मोदी जी पहले स्वयं किसी से प्रेम करें तब उन्हें इसका मोल पता लगेगा”| यहाँ और सब बातें तो ठीक हैं परन्तु “स्वयं किसी से प्रेम” करनेवाली बात बेहद आश्चर्यचकित करनेवाली है| ये वाक्य सड़कछाप मजनुओं का पसंदीदा डायलौग है| जहाँ तक मोदी जी के प्रेम करने का सवाल है तो क्या मोदी जी ने गुजरात से प्रेम नहीं किया? क्या मोदी जी ने भारत से प्रेम नहीं किया? क्या मोदी जी ने उन करोड़ों सैनिकों से प्रेम नहीं किया जो भारत की रक्षा में शहीद हो गए? भारत-पाक युद्ध (1965) में भारतीय सैनिकों की रेलवे स्टेशनों पर यथासंभव सेवा करनेवाले मोदी क्या किसी से प्रेम किये बिना ही आज करोड़ों भारतीयों की आशा बने हुए हैं? अगर थरूर जी के लिए “प्रेम” शब्द का अर्थ मात्र शादियाँ करना है तो ये बेहद शर्मनाक है| भारतीय संस्कृति में हमेशा परमार्थ को वरीयता दी गई है स्वार्थ को नहीं| प्रेम करनेवालों की अगर तुलना की जाये तो “एक व्यापक अर्थ में प्रेम करनेवाला और दूसरा निजी अर्थ में प्रेम करनेवाला” इन दोनों में किसका प्रेम अनुकरणीय है ये बताने की जरूरत नहीं है| प्रेम की जो परिभाषा थरूर जी ने दी है वो प्रेम की परिभाषा कतई नहीं हो सकती हाँ एक अस्थिर चित्त का आचरण जरूर हो सकती है|

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply