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शान्ति काल के दंगाई

खट्ठा-मीठा
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प्रचलित अखबारी भाषा में ‘शान्ति काल’ उस समय से कहते हैं जब देश में साम्प्रदायिक दंगे न हो रहे हों। लेकिन देश में कुछ लोग हैं, और हमेशा होते हैं, जिनको शान्ति पसन्द नहीं आती। इसलिए वे अपनी आदत अथवा स्वार्थ से मजबूर होकर ऐसे कार्य करते रहते हैं जिनसे यह शान्ति जल्दी से जल्दी भंग हो और देश में दंगे हों। दूसरे शब्दों में, वे आगामी दंगों की भूमिका बनाते रहते हैं। इसलिए ऐसे लोगों को मैं ‘शान्ति काल के दंगाई’ कहता हूँ। ये लोग स्वयं भले ही दंगों में भाग न लेते हों, लेकिन दंगों की आग लगाने में सबसे आगे रहते हैं और फिर प्रायः उसको बुझाने की कोशिश करने वालों के साथ भी नजर आते हैं। यानी दोनों हाथ लड्डू।

ऐसे महान व्यक्तियों को कई वर्गों में रखा जा सकता है। यहाँ मैं एक-एक करके इनकी चर्चा करूँगा।

1. इस सूची में सबसे ऊपर हैं जेहादी आतंकवादी। इनको शान्ति से घोर दुश्मनी है। हालांकि स्वयं को शान्ति दूत बताते हैं। जब भी देश में काफी दिनों तक शान्ति रह जाती है, तो वे कोई न कोई ऐसी हरकत जैसे बम धमाके, अपहरण, हत्यायें आदि कर डालते हैं, जिससे शान्ति भंग हो। इनको विदेशों से आतंकवाद फैलाने के लिए खाद-पानी मिलता रहता है और अपने देश से गुप्त या प्रकट समर्थन भी।

2. दूसरे क्रमांक पर हैं मुसलमान और हिन्दू कठमुल्ले। वे समय-समय पर ऐसे बयान दागते रहते हैं कि देश के दोनों प्रमुख समुदायों के बीच घृणा और अविश्वास बना रहे तथा बढ़ता रहे। ओवैसी, बुखारी, मदनी आदि को इस श्रेणी में रखा जा यकता है। बैठे-बैठे बेहूद फतवे पादते रहना इनका प्रमुख कार्य है। ये स्वयं को मुसलमानों या अन्य वर्ग के वोटों का ठेकेदार मानते हैं और आश्चर्य है कि तमाम सेकूलर दल इनके झाँसे में आ जाते हैं, भले ही वे अपने बल पर एक पार्षद को भी नहीं जिता सकते। कई अतिवादी हिन्दू संगठन और व्यक्ति भी इसी श्रेणी में आते हैं।

3. तीसरे नम्बर पर हैं मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले दल और नेता। इनके लिए देश के ऊपर सबसे पहला हक मुसलमानों का है, बाकी देशवासी बाद में आते हैं। इसलिए कहीं पर भी सत्ता में आते ही ऐसे कानून और योजनायें बनाते हैं, जिनसे कुछ मुट्ठीभर मुसलमानों को सीधे फायदे हों तथा वे फायदे अन्य समुदायों को न हों। मुस्लिमों के लिए आरक्षण की घोषणा करना, केवल मुस्लिम बच्चों को वजीफा देना, उर्दू को अनावश्यक महत्व देना आदि इनके कुछ कार्य हैं। वे कभी भी ऐसी योजनायें नहीं निकालते, जिनसे सभी देशवासियों का फायदा हो। वे यह कभी नहीं सोचते कि अगर संसाधन केवल एक वर्ग के लिए खर्च किये जायेंगे, तो दूसरे वर्गों में उस वर्ग के प्रति अच्छे विचार तो नहीं ही बनेंगे। जैसे केवल मुस्लिम लड़कियों को परीक्षा पास करने पर हजारों रुपये का इनाम देना और बाकी लड़कियों को कुछ न देना आदि। वे पूरी बेशर्मी से मुस्लिम तुष्टीकरण करते हैं और इस बात को छिपाते भी नहीं हैं।

4. चौथे नम्बर हैं अपने सेकूलर मीडिया चैनल। इस बिरादरी में कुछ समाचारपत्रों को भी शामिल किया जा सकता है। उनकी तो रोटी ही भड़काने वाले समाचारों से चलती है। तिल का ताड़ बनाना और पहाड़ को राई से भी कम दिखाना इनका ही कमाल है। वे ऐसे वक्तव्यों और समाचारों को बार-बार पूरी बेशर्मी से नमक-मिर्च लगाकर दिखाते रहते हैं, जिनसे देश में खौफ और घृणा का वातावरण पैदा हो। यदि कोई विभिन्न समुदायों के बीच एकता या सद्भाव की बात करता है, तो ये चैनल सबसे पहले उसी की छीछालेदर करते हैं। यों उन पर नजर रखने के लिए तमाम संस्थायें बनी हुई हैं, लेकिन उनका कोई प्रभाव इन पर नहीं पड़ता।

5. इस सूची में आखिरी नम्बर पर हैं सेकूलर कुबुद्धिजीवी। वे स्वयं को सेकूलर अर्थात् धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, पर वास्तव में केवल हिन्दू धर्म निरपेक्ष और मुस्लिम धर्म सापेक्ष हैं। हिन्दुओं की हर बात का विरोध करना और मुस्लिमों के सभी सही-गलत कार्यों को जायज बताना इनका प्रमुख कार्य है। दूसरे शब्दों में वे पूरी तरह शर्म-निरपेक्ष हैं। घोर अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता की बातें करते हुए उन्हें कोई लज्जा महसूस नहीं होती। ऐसे लोग सभी सेकूलर दलों में और निर्दलीय भी पाये जाते हैं।

यों तो इनमें से प्रत्येक श्रेणी के लोगों की और भी छीछालेदर की जा सकती है, पर मैंने ये संक्षेप में ही लिखा है। जब तक शान्ति काल के ये दंगाई देश में रहेंगे, तब तक देश में स्थायी शान्ति और सद्भाव स्थापित होना लगभग असम्भव है।

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