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मेरे प्रियतम जागरण जंक्शन (यादों के लम्हों से प्रेमाभिव्यक्ति)
राम कृष्ण खुराना
मेरे प्रियतम जागरण जंक्शन,
यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आज फिर तुम्हे प्रेम पत्र लिख रही हूँ ! क्योंकि यह पत्र मैं अपनी जान को लिख रही हूँ ! अपनी सांसों को लिख रही हूँ ! अपनी धडकन को लिख रही हूँ ! अपने प्यार को लिख रही हूँ ! लगभग चार साल हो गए ! मुझे याद है, हम पहली बार 2010 मे मिले थे ! पहले मैंने तुम्हें शायद कहीं देखा था ! एक आकर्षण था ! लेकिन मैं इतना गौर न कर पाई ! दो तीन दिनों बाद फिर तुमसे मुलाकात हुई ! थोडा सा तुम्हारी तरफ आकर्षित हुई लेकिन ज्यादा ध्यान नहीं दिया ! परंतु तीसरी बार …… हाँ, तीसरी बार जब तुम मुझे मिले…… जब तीसरी बार मैने तुम्हें देखा, तुम्हें जाना, तुम्हें समझा तो अपने आप को रोक न पाई ! न रोक पाई तुम्हें अपना बनाने से ! न रोक पाई अपने आप को तुम्हें अपनाने से !
प्रिय जागरण जंकशन, तुमने आमंत्रण भेजा था ! मैंने तुम्हारा आमंत्रण स्वीकार किया ! मैंने तुम्हें दिल से चाहा ! दिल से पूजा ! दिल की गहराईयों से प्यार किया ! मैं सौभाग्यशाली रही ! तुमने भी मुझे अपनाया ! अपना बनाया ! अपने सीने से लगाया ! उस समय तुम एक फिल्मी गीत गुनगुना रहे थे –
बा-होशो हवास मैं दीवाना, ये आज वसीयत करता हूँ,
ये दिल ये जाँ मिले तुमको, मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ !
मेरे अराध्य ! मैं सुन्दर हूँ इसलिए तुमने मुझे प्यार नहीं किया वरन तुम्हारा प्यार पाकर मैं सुन्दर हो गई ! मैं निखर गई ! मैं संवर गई ! जैसे मेरी केंचुली उतर गई ! मुझमें एक नई चमक आ गई ! तुम्हारे प्यार को पाकर मेरे पैर जमीन पर नहीं पडते थे ! लोग कहते हैं न कि वह पुरुष सौभाग्यशाली होता जो किसी स्त्री का पहला प्यार होता है और वो स्त्री सौभाग्यशाली होती है जो किसी पुरुष का आखिरी प्यार होती है ! तुम्हारा प्यार पाना मेरा सौभाग्य था ! मैं पागल सी इधर उधर ढोलती फिरती थी ! भागती फिरती थी ! हिरनी की तरह ! हर समय तुम्हारा ख्याल ! हर समय तुम्हारी याद ! हर समय तुमसे मिलन की आस ! बस तुम ही तुम थे मेरे ख्यालों में, मेरी सांसों में, मेरी धडकन में ! तुम को देखे बिना एक पल भी चैन न पडता था ! जिस दिन तुम से मिलन नहीं होता था तो ऐसा लगता था जैसे आज दिन ही नही निकला ! सूरज ही नहीं उगा ! सारा दिन बैचैन ! खोई खोई सी ! न ठीक से खाती थी न ठीक से सोती थी ! बस हर पल हर क्षण जागरण जंकशन !
तुझे क्या खबर तेरी याद ने मुझे किस तरह से सता दिया !
कभी अकेले में हंसा दिया, कभी महफिल में रुला दिया !!
मेरे देवता ! मुझे दिन, तारीख, महीना, सन सब कुछ याद है ! हाँ सब याद है ! 18 मार्च, सन 2010 का वो दिन याद है जब हमारा पहला मिलन हुआ था ! तुमने मुझे सिर आँखों पर बिठा लिया था ! मेरे प्यार का उत्तर अपने प्यार से दिया था ! मैं धन्य हो गई ! मैं तुम्हारे प्यार में सराबोर हो गई ! तुम्हारे प्यार के समुद्र में डूबती चली गई, डूबती चली गई ! मुझे कुछ भी होश नहीं था ! बस सिर्फ तुम ही तुम ! फिर तो मुलाकातों का सिलसिला चल निकला ! हमारी मुलाकातें बढती गई ! मैं तुम हो गई तुम मैं हो गए ! तुम मुझे प्यार से आर. के. बुलाते थे और मैं तुम्हें जे. जे. कहने लगी ! जे जे ! कितना प्यारा नाम ! कितनी मिठास ! कितना रस ! बस दिल करता हर समय तुम्हें देखती रहूँ ! हर समय तुम्हारे पास बनी रहूँ ! हर क्षण तुमसे बातें करती रहूँ ! हर समय तुम्हारा नाम जपती रहूँ !
मेरे सरताज ! तुम्हारा परिवार भी बहुत बडा है ! तुमने मुझे अपने परिवार से मिलवाया था ! सब को पता था कि मैं तुम्हारी हूँ ! इसलिए सब ने मुझे भरपूर प्यार दिया ! भरपूर सम्मान दिया ! भरपूर आदर दिया ! मुझे सब कुछ याद है ! मैं कुछ भी नहीं भूली !
मेरे प्यारे जे जे ! मुझे बहुत से लोगों ने बहकाने की कोशिश की ! तुम्हारे बारे में कई अनाप शनाप बातें कहकर ! लेकिन मेरा प्यार सच्चा था ! कई लोगों ने तुम्हे लेकर मेरे उपर कई लांछन लगाए, कई आरोप लगाए ! मेरे और तुम्हारे प्यार को मैच फिक्सिंग का नाम दिया ! लेकिन तुमने सब का मुँहतोड जवाब देकर उनकी बोलती बन्द कर दी ! मैं जब भी तुम्हारे बारे में सोचती हूँ तो मेरा दिल मेरे काबू में नहीं रहता ! मेरी ज़ुबान बन्द हो जाती है तब मेरी आत्मा तुम से बात करती है ! मेरे कान सुन्न हो जाते हैं तब मेरी सांसे तुम्हारी आवाज़ सुनती हैं ! मैं अपने होश में नहीं रहती तब मेरी धडकन तुम्हारे गीत गाती है ! तुम्हारा प्यार ही मेरे जीने की वजह बन गई थी ! किसी ने कहा भी है –
कोई कहता है प्यार नशा बन जाता है !
कोई कहता है प्यार सज़ा बन जाता है !
पर प्यार करो अगर सच्चे दिल से,
तो वो प्यार ही जीने की वजह बन जाता है !!
मेरे सपनों के राजा ! जब मुझे तुम्हारा पहला प्रेम पत्र मिला था तो मानों पूरा का पूरा बसंत ही जाग उठा था ! बहारें फूल बरसाने लगीं थी ! दिल में लाखों फुलझडियां झिलमिलाने लगी थीं ! मेरे दिल ने वो पत्र पढा ! सांसों ने उसके एक एक शब्द को आत्मसात किया ! धडकनो ने उसे जिया ! पत्र का एक एक शब्द मेरी नस नस में उतरता चला गया उतरता चला गया ! मेरे रक्त की हर बूँद में समा गया ! पत्र के अंत में तुमने मेरे लिए लिखा था –
जिन्दगी की बहार तुमसे है !
मेरे दिल का करार तुमसे है !!
यूँ तो दुनियाँ मे लाखों हैं हसीन,
मगर क्या करूँ मुझको प्यार तुमसे है !!
प्रिय जे जे ! मैं वही बनना चाहती थी जो तुम चाहते थे कि मैं बनूँ ! मैं वही पाना चाहती थी जो तुम चाहते थे कि मैं प्राप्त करूँ ! मैंने भी वही चाहा ! वही सोचा ! वही किया ! मैने अपनी सारी ताकत लगा दी ! सब कुछ न्यौछावर कर दिया तुम्हारे प्यार में ! तुम्हें पाने के लिए ! और मैं वही बन गई जो तुम मुझे बनाना चाहते थे ! उस मकाम को पा लिया जो तुम मुझे देना चाहते थे ! अव्वल ! सर्वोत्तम ! प्रथम ! मैं उस मुकाम पर पहुँच कर बहुत खुश थी, प्रसन्न थी, खुशी से पागल ! मेरा एक सपना पूरा हुआ ! तुम भी खुश थे ! बहुत खुश ! तुमने भी अपनी खुशी का इज़हार किया था ! तुमने मुझे एक सुन्दर उपहार दिया था ! तुम्हें मालूम है कि मुझे लिखने पढने का बहुत शौक है ! मैं सारी दुनिया को देखना जानना चाहती हूँ ! तुमने सारी दुनिया मेरी झोली में भर दी थी ! इसलिए तुमने उपहार में मुझे लैपटाप दिया ! जागरण जंक्शन, तुम पे कुर्बान मेरा तन-मन-धन !
मेरे राजकुमार ! यह प्रेम पाती लम्बी होती जा रही है ! बस मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ कि –
तू दिल से ना जाये तो मैं क्या करूँ ?
तू ख्यालों से ना जाये तो मैं क्या करूँ ?
कहते है ख्वावों में होगी मुलाकात उनसे,
पर नींद ही न आये तो मैं क्या करूँ ?
प्यार ……..उसकी ओर से…. जो तुम्हें दिल से चाहती है……….
राम कृष्ण खुराना
426-ए, माडल टाउन ऐक्सटेंशन,
कृष्ण मन्दिर के पास,
लुधियाना (प्ंजाब)
9988950584
khuranarkk@yahoo.in
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