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पापा तुम कहां चले गए ?

KADLI KE PAAT कदली के पात
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पापा  तुम कहां चले गए ?

राम कृष्ण खुराना

[आज फादर्स-डे है ! सभी लोग आज अपने-अपने पापा को कुछ न कुछ भेंट कर रहे हैं ! उनके साथ खुशियां मना रहे हैं !
परंतु कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिनके पापा उन्हें बचपन में ही छोड कर चले गए !
ये कविता उन्हीं के लिए है “जो लौट के घर न आए”]

न माथा चूमा   न लाड-लडाये,
रोज़ आते थे बाहें फैलाए,
आज सुबह मुझको बिना बुलाए,
पापा तुम कहां चले गए ?

जिसके आने से सुबह होती थी !
जिसकी बाहों में होती थी रात !
जिसके आने से पक्षी थे गाते,
सुन्दर लगती थी यह कायनात
पापा तुम कहां चले गए ?

कितनी वो मनहूस घडी थी,
गुमसुम सी मैं मौन खडी थी !
ढूंढते-ढूंढते तुम्हें मैं थक गई,
भगवान से भी मैं खूब लडी थी !
पापा तुम कहां चले गए ?

अब नहीं सिर पर तुम्हारा हाथ,
अब नही होती तुमसे कोई बात,
अब नहीं तुम मेरे घोडे बनते,
सदा के लिए छूट गया तुम्हारा साथ !
पापा तुम कहां चले गए ?

रोता है घर का कोना-कोना,
दिन को चैन न रात को सोना !
फीके हो गए त्यौहार हमारे,
अपने में जीना, अपने में मरना !
पापा तुम कहां चले गए ?

क्यों बढा दी इतनी दूरीयां,
अब नहीं खनकती हाथों में चूडियां,
सूनी मांग है नहीं कोई साथ,
मैं और मां रोते दिन रात !
पापा तुम कहां चले गए ?

राम कृष्ण खुराना

9988950584

khuranarkk@yahoo.in

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