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राजनीति एक ऐसा मैदान है जहां कोई किसी का साथी नहीं है. इस वाक्य का उदाहरण तो हर भारतीय नागरिक ने तभी देख लिया था जब सताधारी सरकार से समर्थन वापस लेने और देने की बातें भारतीय राजनीति में चल रही थी. प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर भारतीय राजनीतिक सियासत गरमा चुंकी है. नरेंद्र मोदी जिन्हें हमेशा से ही प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जाता है भले ही कभी भी उन्होंने ने यह दावा स्वयं ना किया हो पर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर मीडिया में गर्मागर्मी रही है. मीडिया के एक समहू से यह खबर आ रही है कि एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की दावेदारी फिलहाल खारिज हो गई है. संघ की दलील है कि मोदी को प्रोजेक्ट करते ही भ्रष्टाचार और महंगाई का मुद्दा ओझल हो जाएगा.सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता पर राजनीति शुरू हो जाएगी. ऐसे में एनडीए कुनबा बढऩा तो दूर जदयू जैसे मौजूदा घटक दल उससे अलग हो जाएंगे. नरेंद्र मोदी के नाम को अधिकांश सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की राजनीति से जोड़ कर देखा जाता है ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या गुजरात दंगे आज भी नरेंद्र मोदी की छवी को प्रभावित कर रहे है और क्या अब संघ भी अब यही सच रहा है ?
नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात चुनाव के चलते हुए अच्छी खबर यह थी कि ब्रिटेन के उच्चायुक्त सर जेम्स बेवन ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में नरेन्द्र मोदी से उनके कार्यालय में भेंट की थी. राजनीति जानकार इस मुलाकात को नरेंद्र मोदी के लिए मह्त्वपूर्ण मान रहे थे क्योंकि 2002 के गोधरा दंगों के बाद अब तक ब्रिटेन के किसी भी राजनयिक ने गुजरात का दौरा नहीं किया था. राजनीति जानकारों का यहा तक मानना है कि ब्रिटेन के उच्चायुक्त सर जेम्स बेवन की नरेंद्र मोदी से मुलाकात भविष्य में उनकी छवी को सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता से ओझल कर देंगी. पर अब ऐसा लग रहा है कि अब नरेंद्र मोदी का समर्थक दल ही उन पर अगुंली उठा रहा है या फिर एनडीए 2014 के संसदीय चुनाव के लिए कोई भी खतरा लेना नहीं चाहता है. प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए एनडीए भाजपा नेताओं की नब्ज टटोल रहा है. सूत्रों का कहना है कि सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए नरेंद्र मोदी की योग्यता और क्षमता को स्वीकार तो किया है, लेकिन सियासी माहौल को मोदी के प्रतिकूल बताया है.
संघ नेताओं ने तर्क दिया है कि मोदी को प्रोजेक्ट करने से कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोटों और उनकी पैरोकारी करने वाले क्षेत्रीय दलों को लामबंद करने का अवसर मिल जाएगा. साथ ही एनडीए का जदयू जैसा पुराना और बड़ा घटक दूर जा सकता है.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के आपसी रिश्तों से कौन वाकिफ नहीं है तो ऐसे में साफ जाहिर था कि नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर सबसे बड़ा सवाल नीतीश कुमार ही उठाने वाले है. नरेंद्र मोदी विकास के आधार पर गुजरात में विधानसभा चुनाव लड़ रहे है और इस बात की उम्मीद भी है कि वो फिर से गुजरात में जीत हासिल कर लेंगे पर क्या आने वाले समय में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के एक मजबूत दावेदार के रुप में नजर आएगें ?
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