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ममदू की नीयति है सो वो बीन रहा है..

चुप्पी तोड़
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शायद ममदू को कागज से ज्यादा ही प्यार है और उसकी मां को ये बात कहीं न कहीं खटकती हैं…ममदू की मां थैला झटक कर खाली करते हुए ममदू झल्लाई, “कितनी बार तुझ से कहाहै कि सिर्फ पन्नी ही बीन कर लाया कर, ये ढेर सारे कागज क्यों भर लाता है।वो चन्नू कबाड़ी वाला कागज अलग कर देता है, फिर तौलताहै। जितना बोझ ढो कर लाता है उसमें तीन-चार किलो ही पन्नी निकल पाती है, बाकी कागज का ढेर…। क्या फायदा ऎसी मेहनत का? रोज मना करती हूं पर न जानेकिस धुन में रहता है यह लड़का…! “उसकी मां के दिमाग में तो दो वक्त कीरोटी की जुगाड़ के सिवाय कुछ आता ही कहां है। आज की सांसे खत्म हो रही हैंतो कल जीने की चिंता उसे दो रोटी के गोल चक्कर से बाहर निकलने ही नहीं देतीरोज सुबह वह भी काम पर निकल जाती और ममदू बड़ा-सामैला-कुचैला थैला लेकर निकल जाता शहर की गंदगी और बदबूदार जगहों की सैरकरने। उसकी मजबूर जगहें, गंदी नालियां, नगरपालिका द्वारा जगह-जगह रखे गएकचरे के डिब्बे, अस्पताल, सड़क किनारे लगी चाय की दुकान होटलें और उन बिल्डिंगोंके आसपास जहां बेशउर लोग कचरा अपनी खिड़कियों से बाहर उछाल देते हैं। यहीतो वे जगहें हैं, जहां से ममदू के पेट की ज्वाला को ईधन मिलता है।



इन जगहों पर घूमते-घूमते कभी-कभी उसका अंबेडकर स्कूल के सामने से भी गुजरनाहो जाता, जहां उसकी उम्र के बच्चे पढ़ते हैं। संयोग से कभी-कभी उस वक्तबच्चों की खाने की छुट्टी होती। स्कूल के मैदान में घने नीम के पेड़ कीछांव में बच्चे अपने-अपने टिफिन से खाना खा रहे होते, तो कोई भागदौड़, खेलमें व्यस्त रहते।

बाल सुलभ ममदू अपने तन पर मैली चीथड़े हुई कमीजलटकाए, कंधे पर कचरे का थैला लटकाए, स्कूल की बाउंड्री वॉल के पास खड़ा होजाता। कम ऊंचाई बाउंड्री वॉल पर लगी मोटे तार की बड़े-बड़े चौकोर छेद वालीजाली से ममदू को अंदर का सब नजारा दिखाई देता। अपने काम से बेखबर ममदू उनबच्चों को निहारने लगता। उसके मैले से काले पड़े चेहरे पर दिव्य मुस्कानबिखरने लगती।वह मन ही मन कुछ सोचता फिर आगे बढ़ जाता।


उस मासूमके मन के भाव कोई क्या जाने! थोड़े आगे एक कंप्यूटर टाइपिंग, फोटोकॉपी, लेमिनेशन, फैक्स और न जाने क्या-क्या काम की दुकान आती। सुबह-सुबह दुकानवाला सफाई करके कंप्यूटर पेपर वेस्ट, वह कागज जो टाइपिंग में या फोटोकॉपीकरने में खराब हो गए, दुकान के बाजू में डाल देता।

यह सफेद प्रेसबंद कागज ममदू को अच्छे लगते और वह उनको बटोर कर अपने थैले में डाल लेता।पढ़ना-लिखना तो वह जानता नहीं, पर साफ- सुथरे सफेद कागज ममदू को भले लगते।घर जाकर उसे उन कागजों के बदले मां की डांट-फटकार सुननी पड़ती, पर वह भीक्या करे, कागज से उसका कुदरती रिश्ता है। कागज से निकली शिक्षा और बच्चोंका मन जब एक हो जाते हैं, तो मनुष्य का मनुष्य होना सार्थक हो जाता है।


ममदूकी कहानी की जनक कागज और कलम ही तो है। फिर वह उसे फाड़े, पढ़ने का अभिनयकरे या अपनी नन्ही-नन्ही उंगलियों में कलम पकड़ कर कागज पर आड़ी-तिरछीलकीरें खींचे। ममदू को भी कागज आकçष्ाüत करते, तो उसकी मां को गंदी मैलीबदबूदार पॉलिथीन की थैलियों में अपना भविष्य नजर आता।

ममदू मां कीडांट सुन ही रहा था कि झुग्गी से सुरेखा हांफती-कांपती दौड़ी चली आई। हाथमें प्लास्टिक की खान भरने वाला बड़ा-सा थैला लेकर झुग्गी के दरवाजे मेंझांकती हुई बोली- काकी जल्दी चलो, पीठे का सरकारी गोदाम है ना जो गंदे नालेके किनारे बना है, वहां पर बाहर पड़ी गेहूं की बोरियां बारिश से फट गईहैं। गेहूं बोरों से फिसल-फिसल कर नाले में बह रहा है। गोमती और सुक्खी भीवहीं गई हैं। काकी एक साड़ी रख ले, नाले के पानी से गेहूं छानने के लिए औरभरने के लिए कुछ बोरा वगैरह। गंदे नाले के पानी में पड़े गेहूं साड़ी केकपड़े से छान-छान कर भर लाएंगे।


यह खबर ऎसी थी कि जैसे स्विस बैंकमें जमा सारा काला धन वापस आ गया हो और सरकार ने मुनादी कर दी हो कि यहजनता का माल है, जो चाहे जितना भर कर ले जाए। ममदू की मां ने कचरा बीननेवाला बड़ा थैला लिया, तो वह जगह-जगह से फटा हुआ था। उसने झट मैली-कुचैली, मुड़ी-तुड़ी पॉलिथीन की आठ-दस छोटी-बड़ी थैलियां लीं। बदन पर लपेटी पुरानीमैली साड़ी उतारी और ब्लाउज पेटीकोट में ही ममदू को ले सुरेखा के पीछेभागी।

कुछ देर बाद नाले के गंदे पानी से रिसती गेहूं से भरी आठ-दसछोटी-बड़ी, नीली-पीली, काली-सफेद पॉलिथीन की थैलियां ममदू की झुग्गी मेंरखी थीं। किसी ने कुछ नहीं कहा, पर गेहूं से भरी यह गंदी पॉलिथीन कीथैलियां ममदू के मन-मस्तिष्क में उसका मुंह चिढ़ाती नाच रही थीं, कह रहीथीं कि मां ठीक कहती है कि ये गंदी थैलियां कागज से कहीं ज्यादा अहम है।


ममदूअपने दिमाग में ढेर सारी उथल-पुथल लिए, मैला थैला कंधे पर लटकाए अंबेडकरस्कूल की बाउंड्री की जाली के पास खड़ा खेलते-कूदते साफ-सुथरे बच्चों कोनिहार रहा था। एक स्कूली बच्चा चोरों की तरह इधर-उधर देखता जाली के पासआया, जहां ममदू खड़ा था। उसने जाली के पास दीवार की मुंडेर पर अपना टिफिनबॉक्स उल्टा कर सारा खाना फेंक दिया और डिब्बा बंद कर वापस भाग गया। ममदूने हाथ बढ़ाकर सारा खाना समेट लिया। फिर वह रोज खाने के लालच में उसीबाउंड्री वॉल के पास खड़ा रहने लगा।

बच्चा जो खाना वहां फेंक जाता, ममदू उसे उठा लेता। एक दिन ममदू की उस लड़के से बात हो गई। लड़के ने खानाफेंकने का सारा किस्सा ममदू को बता दिया। ममदू आंखें फाड़कर उसकी बात सुनतारहा। मम्मी रोज यह टिफिन बना कर देती है पर यह खाना मुझे अच्छा नहीं लगताइसलिए मैं इसे यहां फेंक देता हूं, मम्मी समझती हैं मैंने खा लिया। फिर मैंघर जाकर मिठाइयां,चॉकलेट, आलू चिप्स, बादाम, किशमिश, मैगी सब खाता हूं।ये सब मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। लड़के की बातें सुनकर ममदू के मुंह मेंपानी भर आया। ममदू ने पूछा,,”इतना सारा सामान तुम्हारे यहां आता कहां सेहै?”


वह बोला, “बाजार से! मेरे पापा के पास बहुत पैसे होते हैं। वहऑफिस में काम करते हैं न…!” ममदू ने पूछा, “ऑफिस में क्या काम होता है? क्या वहां पैसे बनते हैं?” वह लड़का बोला- “नहीं, वहां कागजों की फाइलोंमें काम होता है। मेरे पापा बहुत सारे कागज पढ़ते हैं और लिखते हैं। फिरउनको बहुत सारे पैसे मिलते हैं। बस… फिर हम बाजार जाते हैं और बहुत सारीचीजें खरीदते हैं।” ममदू ने आश्चर्य से पूछा-” क्या बैठे-बैठे सिर्फ कागजोंको पढ़ने-लिखने से इतने सारे पैसे मिलते हैं?” वह बहुत उत्सुक था उस लड़केसे और बहुत कुछ जानने के लिए।

लड़का बोला, “मेरे पापा कार मेंबैठकर ऑफिस जाते हैं, शानदार सूट पहनकर, मेरी मां भी बहुत अच्छी-अच्छीसाडियां पहनती हैं और मुझे बहुत प्यार करती हैं। हमारा घर भी बहुत बड़ा औरसुंदर है। मैं भी स्कूल में पढ़ाई कर रहा हूं। मैं भी पापा जैसा बनूंगा, बड़ा आदमी…!”इतने में स्कूल की घंटी बज गई और बच्चा भागकर अपने दोस्तोंके टोले में खो गया।


स्कूल की घंटी बजना तो बंद हो गई पर ममदू केमस्तिष्क में सैकड़ों घंटियां बजने लगीं। उसके कानों में लड़के के शब्दगूंजने लगे…” मेरी मां बहुत अच्छी-अच्छी साडियां पहनती हैं…। मुझे बहुतप्यार करती हैं…। हमारा घर भी बहुत बड़ा और सुंदर है। मैं भी स्कूल मेंपढ़ाई कर रहा हूं… मैं भी बनूंगा पापा जैसा बड़ा आदमी…! ” ममदू को अपनेखयालों में अपनी झुग्गी के दरवाजे पर चीथड़ा लपेटी खड़ी मां दिखीं, जो उसेप्यार करने के बजाय डांट रही हंै कि पन्नी के बदले कागज क्यों बीनकर लायाऔर भला-बुरा कह रही हैं।

वह उदास हो गया और सोचने लगा, “क्या यहकागज की किताबें पढ़ने से छोटा आदमी बड़ा आदमी बन जाता है?” ममदू का बालसुलभ मन सोचने लगा… अगर मैं भी कागज पढ़ सकूं तो अच्छा-अच्छा खाना, अच्छे-अच्छे कपड़े मुझे और मेरी मां को भी मिले…! ममदू के ह्वदय में थैलेमें पड़े कागजों का आकष्ाüण और बढ़ गया। उसके मन में थैले में पड़े सफेदकागज और गंदी पॉलिथीन की थैलियों के बीच जंग होने लगी। उसी उधेड़बुन में वहघर चला गया। मां ने रोज की तरह आज भी उसे भला-बुरा कहा पर वह अंदर सेपत्थर हो गया था।


रात को नींद में उसे सितारों से जगमगाता आसमानदिखा। उसकी मां सुंदर साड़ी पहने, ढेर सारे गहनेलादे बड़े-से घर में, चांदी के थाल में अच्छा खाना सजाए, दोनों बांहें फैलाए उसे पुकार रही है।ममदू हाथ में ढेर सारे कागज लहराते हुए उसकी ओर दौड़ा चला आ रहा है।सुबह-सुबहलाउडस्पीकर के भोंगे की आवाज से उसकी नींद टूटी तो वह भागकर झुग्गी सेबाहर आया। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। उसने देखा झुग्गी की तंग गलियों मेंसरकारी हरकारा एक रिक्शा में बैठा चिल्ला रहा था- हर बच्चे का अधिकार, शिक्षा का अधिकार। अपने बच्चों को पास के सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजिए।

सरकारने बच्चों को मुफ्त शिक्षा का इंतजाम किया है। वहां खाना भी मिलेगा औरकपड़ा भी। रिक्शा जब ममदू की झुग्गी के पास से गुजरा तो ममदू ने रिक्शे परलगा पोस्टर देखा। उस पर लिखा था, “एक बेहतर कल बनाएं, सारे बच्चे स्कूलजाएं। कोई बच्चा छूट ना पाए, हर बच्चा स्कूल जाए।” ममदू यह सब तो पढ़ नहींसका, पर उसने देखा कि एक पेंसिल पर सवार दो बच्चे बस्ते लटकाए मुस्करातेहुए उड़े चले जा रहे हैं। एक मां अपने बच्चे को गोद में बिठाए, स्लेट परउसको लिखना सिखा रही है। मुख्यमंत्रीजी बच्चे को गोद में उठाकर मुस्करा रहेहैं। ममदू पोस्टर पर यह सब देखकर गद्गद् हो गया।

वह भागकर घर मेंआया। उसने मां को देखा, वह सब तरफ से अनजान चूल्हे के पास चाय बना रही थी।बाहर भोंगे की आवाज का उस पर कोई असर नहीं था। ममदू मां से कुछ कहना हीचाहता था कि मां ने कहा, “यह चाय पी ले और जल्दी जा अपने काम पर। देर होनेपर मुआ हरमू सब पन्नी बीन कर ले जाएगा, तेरे जाने से पहले। सुबह बहुत जल्दीउठ कर भागता है हरामी…।” और एक टूटा कप बदरंग मैली चाय से भरा ममदू कीओर बढ़ा दिया।

ममदू ने चाय के कप में झांककर देखा। एक क्षण के लिएवह कहीं खो गया। उसे लगा उसके नन्हे हाथों में एक सुनहरी प्याला है, जिसमेंउसके सारे सपने मोतियों की तरह भरे हैं। वह मोतियों को खुश होकर निहार हीरहा था, “जा जल्दी कर…!” मां की कठोर आवाज से घबराकर सुनहरी प्याला उसकेहाथ से छूट गया। सारे सपनों के मोती बिखर गए। टूटे कप के टुकड़े और बदरंगमैली चाय झुग्गी के कच्चे फर्श पर फैल गई।

शायद कागज पन्नी बीनना ही ममदू की नीयति है सो वो बीन रहा है..

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