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बरसात में दिल्ली का राजनैतिक माहौल गर्माहट पर

"Ek Kona"
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aapबरसात ने दिल्ली में दस्तक देने के साथ ही दिल्ली के राजनीतिक पारे में उबाल आ गया है. दिल्ली में हर दिन राजनीतिक माहौल एक तराजू की तरह कभी किसके पाले में रहा तो कभी दूसरे पाले में तो कभी बराबरी पर। सरकार बनाने की ऐसी खबरें “सूत्रों” के माध्यम से ऐसे आते रही कि मानो लगा कि बीजेपी कल ही सरकार बना लेगी जिसमें बीजेपी के प्रदेश स्तर के कई नेता भी ईस बात की तस्दीक करते हुए नजर आते है कि मानो हाईकमान की मुहर का ही ईंतजार हो। केजरीवाल भी रातों रात एक्टिव होकर सबसे पहले ट्वीट करते है कि बीजेपी विधायकों की खरीद फरोख्त कर सरकार बना रही है और दूसरे दिन दिल्ली में कई जगह खरीद फरोख्त वाले पोस्टर और बैनर लगे मिल जाते हैं जगह-जगह पर। लेकिन मामले में नया मोड तब आता है जब ओखला के विधायक आरिफ खान यह खुलासा करते हैं कि मनीष सिसोदिया और संजय सिंह आसिफ खान से मिले थे और यहां तक कि केजरीवाल की जगह मनीष सिसोदिया को मुख्यमंत्री बनाने पर भी सहमति दे भी दी थी। जिस पर अभी तक मनीष सिसोदिया ने सफाई भी नहीं दी सवाल यह है कि बीजेपी की खरोद फरोख्त पर ट्वीट करने वाले केजरीवाल को यह सब मालूम नहीं था? या या फिर मनीष सिसोदिया और संजय सिंह अपनी तरफ से पहल कर रहे थे?  वैसे आप के पुराने सदस्य इलियास आजमी की बातों पर यकीन किया जाय तो इस बात की पुष्टि होती है और आप जिस तरह से रणनीति बनाती है उससे तो लगता है कि ये संभव भी है।

केजरीवाल को पता है कि अगर बीजेपी सरकार बनाती है तो नुकसान आप पार्टी को हो सकता है औऱ कुछ विधायक टूट भी सकते हैं। सवाल यह भी उठता है कि कहीं बीजेपी को रोकने के लिए ये सब नहीं हो रहा था? अगर ऐसा है तो आप पार्टी भी वही सत्ता की राजनीति कर रही है जो और पार्टिया करती हैं फिर वो  औरों से अपने को क्यों अलग बता रही है?  नया मामला तब आता है जब दिलीप पांडे की गिरफ्तारी होती है वो भी भडकाऊ पोस्टर लगाने के मामले में जिन पर लिखा होता कि बीजेपी का साथ देने वालों को कौम का दुश्मन हैं , कांग्रेस नेताओं को गद्दार कहा गया और उनका जुम्मे के दिन घेराव करने की अपील की गयी।  पोस्टर मामले में पुलिस की प्रारंभिक जांच में यह बात आती है कि दिलीप पांडे को दो बार ईमेल से भेजे गए थे। पहली बार प्रूफ रीडिंग के लिए और दूसरी बार जो मेल भेजा गया था उसमें लिखा था फाइनल फॉर प्रिंट ऐंड पैंपलेट। पहली बार के मेल में तीन अटैचमैंट थे। दूसरी बार के मेल में पांच अटैचमेंट थे। इसमें पोस्टर का साइज, पैंपलेट का साइज और डेढ़ लाख पोस्टर छपवाने की बात कही गई थी। पुलिस बताती है कि यह मेल दिलीप पांडे को , सीसी नहीं बल्कि सीधे भेजा गया था। यहां एक बात समझ में नहीं आती किएक छोटा सा बच्चा भी ऐसी हरकत नही कर सकता क्योंकि उसको पता है की इसका अंजाम क्या होगा, तो सोचने वाली बात यह है कि इतने पढ़े लिखे लोगों की पार्टी ऐसा कैसे कर सकती है? ऐसा लगता है कि बीजेपी को घेरने के चक्कर में आप खुद घिर गयी है।

बात करें बीजेपी की तो, दिल्ली में लोकसभा में सात सीटें जीतने के बाद भी बीजेपी सीधे चुनाव में जाने से क्यों कतरा रही है? बीजेपी को चाहिए कि वो जोड-तोड की बजाय सीधे चुनाव में जाये अगर बीजेपी जोड-तोड करने में सफल भी रही तो आने वाले विधानसभा चुनाव में इससे पार्टी की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड सकता है. बीजेपी की सरकार बनाने के मामले में अभी के हालात ऐसे है कि ना उसे उगलते बन रहा है ना निगलते। मोदी की बात करे तो शायद वो कभी नहीं चाहेंगे कि जोड़ तोड़ की सरकार बनाकर देश भर में उनकी किरकिरी हो यही वजह है कि दिल्ली बीजेपी चाहते हुए भी सरकार नहीं बना पा रही है वरना छह विधायक तोड़ना कोई कठिन काम नहीं है।

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