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आज फिल्मों में दिखाया जाता है की, अभिनेता ..अपनी प्रेमिका (अभिनेत्री) को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता हैं | फिल्मों में हीरो का अपनी प्रेमिका को प्राप्त करने के लिए पागलपन की हद तक जाकर…लोगों से लड़ना, परिवारवालों से लड़ना, मार-पीट, खून-खराबा करना …आज हमारे समाज में, विशेषकर हम युवाओं में प्रेम की परिभाषा है | अर्थात अपनी प्रेमिका को प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाकर…उसे हासिल करना ही प्रेम है | विश्वास कीजिये … प्रेम की यह फ़िल्मी परिभाषा आज मेरे हमउम्र युवाओं के सिर चढ़ के बोल रही है| प्रश्न उठता है, क्या एक इंसान का दूसरे इंसानो का क़त्ल प्रेम है? दूसरों के साथ मार-पिट भी प्रेम ही माना जायेगा? क्या इसी प्रेम का संदेश महात्मा बुद्ध और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया था?
हमें समझने की आवश्यकता है की एक सच्चा प्रेमी सिर्फ प्रेम कर सकता है | वह किसी का खून नहीं कर सकता, किसी से मार-पीट नहीं कर सकता है| उसे प्रेमयुद्ध में विजय के लिए किसी हथियार की आवश्यकता नहीं पड़ेगी…क्योकि प्रेम अपने आप में दुनिया का सबसे बड़ा हथियार है| वह किसी को हरा नहीं सकता, लेकिन सबको जीत सकता है|
वास्तव में जिस प्रेम की परिभाषा हमारी फिल्मों में दिखाई जा रही हैं, …वह प्रेम नहीं, अपितु भोग की इच्छा की आड़ में पैदा हुआ “विपरीत लिंगी आकर्षण” है| इस आकर्षण को प्रेम का नाम देकर इस समाज को अस्वस्थ किया जा रहा हैं, देश और समाज के भविष्य (युवाओं) को भ्रमित किया जा रहा हैं |
हमें समझने की आवश्यकता है की प्रेम कोई रिश्ता नहीं, एक अहसास का नाम है | एक भावनात्मक और व्यवहारिक प्रतिक्रिया है.| हर इंसान जब अपनी पसंद की वस्तु, जीव या, व्यक्ति को देखता है, उस क्षण भर में उसके ह्रदय में उठाने वाले उद्गार को हम प्रेम कह सकते है | वास्तव में प्रेम इस ब्रम्हांड की हर वस्तु से, हर जीव से कर सकते हैं| हमारे बीच अनेकों लोग है, जिन्हे विभिन्न जानवरों से प्रेम है,..पशु, पक्षियों से प्रेम हैं| कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्हों विषैले सांपों से भी प्रेम है | वास्तव में उनके बीच भी एक रिश्ता है, ..दोनों एक दूसरे के बिना अपने आपको अधूरा पाते हैं| हम अपने माता-पिता से प्रेम करते हैं, भाई-बहनो से प्रेम करते हैं..क्योकि ये सभी हमारी खुशियों की बड़ी वजह हैं | रिश्ते हमारे जीवन के वास्तविक रंग होते है, और रिश्ते को मजबूती देने के लिए प्रेम का अहसास होना आवश्यक है | इसके विपरीत, आज अपनी प्रेमिका को प्राप्त करने के प्रयास में की जाने वाली ‘हीरोगिरी’ या, ‘दादागिरी’ को प्रेम का नाम देकर …प्रेम की पवित्रता, इसके पाक अहसास को ..अपवित्र का करने का नापाक कार्य किया हो रहा है |
आज हम सभी को एक स्वस्थ समाज की सोच के साथ आगे बढ़ने से पूर्व ..समाज में तेजी से फ़ैल रही प्रेम की अस्वस्थ और फ़िल्मी परिभाषा पर मंथन करना ही होगा| प्रेम ही जीवन है,..हमें समझाना होगा की हम जीवन की परिभाषा को अस्वस्थ कर रहे हैं, काल्पनिक फिल्मों के चक्कर में | प्रेम मानवता का आधार हैं, हम उस आधार को बदलने का प्रयास कर रहे हैं | वास्तव में ऐसा होना मानव जीवन के लिए घातक है| आज जिस तरह हमारे समाज में इस नकारात्मक परिभाषा का असर देखने को मिल रहा हैं, जिस तरह युवा स्त्री शरीर को पा लेने के प्रयास में अपराधों में लिप्त हो रहे हैं,..चिंतन की आवश्यकता और प्रबल होती है | हमें सोचना होगा की एक स्वस्थ समाज में ऐसी अस्वस्थ मानसिकता वाली ‘प्रेम’ किस हद तक जायज है? क्या ऐसी नकारात्मक परिभाषा के साथ हम ‘प्रेम ही जीवन है’ की मूल अवधारणा को जीवित रख पाएंगे अपने समाज में? जिस तरह से आज फिल्मे हमारे समाज को निर्देशित कर रही हैं, युवाओं को मार्गदर्शित कर रही है..क्या इन पहलुओं पर गौर किये बिना हम एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना सामने रख पाएंगे? ……अपनी राय स्पष्ट शब्दों में दें …..
-K.Kumar ‘Abhishek’ (30/07/2014)
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