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एक प्रश्न जो पिछले काफी दिनों से मुझे परेशान किये जा रहा है, शिक्षित कौन है? संभव है की यह प्रश्न कई लोगों के लिए अत्यंत हास्यास्पद हो, क्योंकि बेहद सामान्य अवधारणा है कि, वह इंसान जो हमारी शिक्षा पद्धति के अनुसार अध्ययन के पश्चात परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त कर, ‘प्रमाणपत्र’ का हक़दार बनता है, वही शिक्षित है! लेकिन जब भी हम शिक्षा के बुनियादी उदेश्यों और ज्ञान के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, इस प्रश्न का हल ढूढ़ने का प्रयास करते हैं, देश के शैक्षणिक वातावरण कि एक चिंताजनक तस्वीर परिलक्षित होती है! आज जिस तरह से हमारे समाज में सामाजिक, आर्थिक, व्यवहारिक, व्यवसायिक, नैतिक और धार्मिक भ्रष्टाचार बढ़ रहा है ! जिस तरह अपने आपको शिक्षित कहने वाले लोग, धोखाधड़ी, जालसाजी, अपहरण, बलात्कार और विभिन्न समाज व् राष्ट्र को कलंकित करने वाले भ्रष्ट् कर्मो में लिप्त हो रहे है, अपने आपको ‘ज्ञानी’ कहने वाले लोग..लोभ, लालच, और द्वेष जैसे मानवीय अवगुणो के प्रभाव में लगातार मानवता और इंसानियत को शर्मसार कर रहे हैं, …..मुझे बेहद आश्चर्य है कि, ऐसे लोग शिक्षित कैसे हो सकते है? जबकि ऐसा अशिष्ट और घृणित ज्ञान किसी भी कक्षा के किसी भी पुस्तक में नहीं मिलता है!
आज हम अपनी शिक्षा पद्धति के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर विभिन्न विषयों में बड़ी-बड़ी डिग्रियों के प्रमाणपत्र प्राप्त करते है, और उन्ही प्रमाणपत्रों के आधार पर हम सरकारी, अर्द्धसरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों में प्रतिनियुक्त होते हैं! प्रतिनियुक्ति के पश्चात हम उन्ही भ्रष्ट कार्यों में लग जाते है, जिसकी मनाही हमारी पाठ्य पुस्तकों में की गयी है! इस तरह हम लगातार पाठ्य पुस्तकों से प्राप्त ‘ज्ञान’ को दरकिनार कर असामाजिक, अनैतिक और अपराधिक कार्यशैली को जीवन का आधार बना लेते है, और जब भी शिक्षा की बात आती है…प्रमाणपत्रों को आगे कर अपने आपको शिक्षित भी साबित कर लेते हैं! स्पष्ट है की हम भारतीय सिर्फ और सिर्फ प्रमाणपत्रों में ही शिक्षित है ! हमारी शिक्षा सिर्फ और सिर्फ कागज के कुछ पन्नों का स्वरुप भर है! पाठ्यक्रम में सिखाई अच्छी बातों, मानवीय मूल्यों, और आदर्श जीवन के सिद्धांतों के लिए हमारे वास्तविक जीवन में कोई जगह नहीं है! परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए हमें चिंतन करना होगा कि, इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार कौन हैं? हमें समझने का प्रयत्न करना होगा कि, जिस शिक्षा ने एक इंसान के रूप में हमारा मह्त्व सिद्ध किया , वही शिक्षा हमारे जीवन में महत्वहीन कैसे हो गई ? ‘शिक्षा’ सिर्फ प्रमाणपत्र आधारित औपचारिकता क्यों बन गयी?
इस सन्दर्भ में हालात कि वास्तविकता और परिस्थिति कि गंभीरता को समझने का प्रत्य करें तो, हम पाएंगे कि आज हमारे भारतीय समाज में शिक्षा का उदेश्य ‘ज्ञानोपार्जन’ नहीं, अपितु ‘धनोपार्जन’ हो गया है! आज छात्र, अभिभावक, और गुरु …तीनो के लिए शिक्षा का औचित्य सिर्फ और सिर्फ प्रमाणपत्रों कि प्राप्ति रह गया है, जिससे नौकरी या, व्यवसाय के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जा सके! कड़वी परन्तु वास्तविक सचाई है कि, आज हमारे जीवन में पाठ्य पुस्तकों कि सिखाई गयी बातों का कोई महत्वा नहीं है! एक इंसान के रूप में हमारे कर्तव्यों और सामर्थ्यवान जीवन के सिद्धांतों कि जो सिख हमारी पुस्तकों में मिलती है, आज छात्रों के लिए सिर्फ और सिर्फ परीक्षा कि वस्तु मात्र है! आज छात्र सिर्फ पाठ्य पुस्तकों को रट्टा मार रहे है, जिससे वे परीक्षा में पूछे गए सवालों का सही जवाब देकर अच्छे अंक प्राप्त कर सकें.! एक बार परीक्षा समाप्त हुई …पुस्तकों कि पढ़ी गयी बातों को हम अपनी सोच के दायरे से बाहर निकल फेंकते है ..!
आज इस देश के हर नागरिक को इस विषय कि गंभीरता को समझना होगा, मुख्य रूप से अभिभावकों को अपनी सोच को लेकर बेहद गंभीर चिंतन करने कि आवश्यकता है.! आज परिस्थितियां निश्चय ही सामान्य दिख रही है..लेकिन हमारे देश में एक ऐसा वर्ग भी तैयार हो रहा है, जिसका मानना है कि जब से भारतीय समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ है, जैसे-जैसे लोग शिक्षित हुए है…देश में भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी-जालसाजी, और हर प्रकार कि अपराधिक, असामाजिक, अनैतिक गतिविधियाँ बढ़ी है! लोगो में लोभ,लालच, द्वेष-जलन, अहंकार, जैसे अमानवीय अवगुणों का प्रभाव बढ़ा है! ‘शिक्षा’ ने हमारे समाज को पथभ्रष्ट करने का कार्य किया है! विश्वास कीजिये..आंकड़ें बेहद मजबूती के साथ इस अवधारणा को बल भी देते नजर आते है! हकीकत तो यही है कि जिस शिक्षा में एक इंसान के रूप में हमें मानवीय विकास कि नयी राह दिखाई, उसी ज्ञान को हम अपने दिशाहीन बना चुके हैं!
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